भारत सरकार ने 1990 के दशक के अंत से ही ऊर्जा कंपनियों को रिफाइनरियों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया था। इस तरह देश कच्चे तेल का एक महत्वपूर्ण आयातक होने के बावजूद 2001 में पेट्रोलियम उत्पादों का शुद्ध निर्यातक बन गया। पेट्रोलियम नियोजन और विश्लेषण प्रकोष्ठ के अनुसार, रिफाइनरियों और फ्रैक्शनरेटरों द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों का उत्पादन वित्तीय वर्ष 2015-16 के दौरान 231.3 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) रहा, जो पिछले साल 220.7 एमएमटी था।
भारत में रिफाइनिंग क्षमता में अच्छी वृद्धि के साथ, वित्तीय वर्ष 2005-06 के बाद से पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में तेजी आई है। हालांकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के चलते हाल के वर्षों में निर्यात प्रभावित हुआ है। कीमतों में गिरावट और बढ़ती प्रतियोगिता के इस चुनौतीपूर्ण परिवेश में, वित्तीय वर्ष 2015-16 के दौरान पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में (-) 46.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई और यह निर्यात पिछले वर्ष के 56.8 बिलियन यूएस डॉलर के मुकाबले घटकर मात्र 30.4 बिलियन यूएस डॉलर का रह गया। तथापि, देश के कुल निर्यात में पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात की हिस्सेदारी वित्तीय वर्ष 2009-10 के 15.7 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2013-14 में 20.1 प्रतिशत हो गई। हालांकि, इस निर्यात हिस्सेदारी में भी गिरावट दर्ज की गई, जो वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान 18.3 प्रतिशत के आंकड़े को छूकर वित्तीय वर्ष 2015-16 में 11.6 प्रतिशत हो गई।
2015-16 के दौरान, संयुक्त अरब अमीरात भारत से पेट्रोलियम निर्यात के लिए सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य रहा, जिसे देश के कुल पेट्रोलियम निर्यात का 12.7 निर्यात किया गया। इसके बाद सिंगापुर (9.9 प्रतिशत), अमेरिका (6.8 प्रतिशत), केन्या (5.1 प्रतिशत) और सऊदी अरब (4.7 प्रतिशत) का स्थान रहा।
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अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आउटलुक 2016, ईआईए का अनुमान है कि 2040 तक ऊर्जा की वैश्विक मांग का आधा हिस्सा भारत और चीन से होगा और भारत की ऊर्जा मांग 3.2% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ेगी। बीपी एनर्जी आउटलुक 2016 के अनुसार 2035 तक भारत की ऊर्जा खपत 4.2% प्रति वर्ष की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो दुनिया की दूसरी सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा है।