ईओयू योजना के बारे में जानने से पहले जानना जरूरी है कि ईओयू क्या है। ईओयू यानी निर्यातोन्मुख इकाइयां। यह योजना इन्हीं इकाइयों के लिए है। इस योजना का लाभ ऐसी इकाइयां उठा सकती हैं, जो (घरेलू टैरिफ क्षेत्र - डीटीए में अनुमत बिक्री को छोड़कर) अपने पूरे माल और सेवाओं का निर्यात करने के लिए बनाई गई हों। इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (ईएचटीपी) योजना, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (एसटीपी) योजना अथवा बायो टेक्नोलॉजी पार्क (बीटीपी) योजना के अंतर्गत ऐसी विनिर्माण इकाइयां स्थापित की जा सकती हैं। माल के विनिर्माण में मरम्मत, पुनर्निर्माण, रद्दोबदल, रीइंजीनियरिंग, सेवाएं प्रदान करना, सॉफ्टवेयर विकास तथा कृषि-प्रसंस्करण, मत्स्यपालन, पशुपालन, बायो टेक्नोलॉजी, पुष्पोत्पादन, बागवानी, अंगूरों की खेती, पोल्ट्री और रेशम उत्पादन से संबंधित इकाइयां शामिल हैं । ट्रेडिंग इकाइयों को इन योजनाओं में शामिल नहीं किया जाता है।
इन योजनाओं का उद्देश्य निर्यातों को बढ़ावा देना, विदेशी मुद्रा आय बढ़ाना, निर्यात उत्पादन के लिए निवेश आकर्षित करना और रोजगारों के अवसर पैदा करना है। ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयों को विनिर्दिष्ट क्षेत्रों को छोड़कर शेष सभी में विदेशी मुद्रा का निवल अर्जक होना चाहिए। इस विदेशी मुद्रा आय की गणना पांच साल के ब्लॉकों में संचयी रूप से की जाती है। गणना की शुरुआत उत्पादन शुरू होने से की जाती है।
ईओयू के रूप में स्थापना के लिए कुछ विनिर्दिष्ट क्षेत्रों को छोड़कर, संयंत्र और मशीनरी में न्यूनतम 1 करोड़ रुपए के निवेश वाली परियोजनाओं पर ही विचार किया जाता है। अनुमोदन बोर्ड इससे कम राशि वाले निवेश पर भी ईओयू की स्थापना की अनुमति प्रदान कर सकता है। ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयों को लघु उद्योगों के लिए आरक्षित सामानों के विनिर्माण के लिए औद्योगिक लाइसेंसिंस से छूट प्राप्त होती है। ऑटोमैटिक रूट के जरिए 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति प्रदान की गई है।
ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयां आईटीसी (एचएस) में प्रतिबंधित मदों को छोड़कर सभी तरह की वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात कर सकती हैं। अनुमोदन बोर्ड किसी प्रतिबंधित वस्तु के निर्यात की अनुमति देने पर विचार कर सकता है। यह मामलेवार आधार पर निर्भर करता है। ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयां घरेलू शुल्क (ड्यूटी) का भुगतान किए बिना टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) अथवा डीटीए में अनुबद्ध गोदामों / भारत में आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों से हर तरह के माल का आयात / खरीद कर सकती हैं। इनमें पूंजीगत माल सहित हर वह माल शामिल है, जो इन इकाइयों की गतिविधियों के परिचालन के लिए अपेक्षित है। ऐसे आयात / खरीद की बस एक ही शर्त है कि आयात किया जाने वाला या खरीदा जाने वाला माल आईटीसी (एचएस) में आयात के लिए प्रतिबंधित न हो। इन इकाइयों को पूंजीगत माल सहित अनुमोदित गतिविधि के लिए अपेक्षित माल का ग्राहकों से मुफ्त अथवा ऋण / लीज़ पर आयात करने की भी अनुमति होती है। कुछ मदों को छोड़कर ईओयू विनिर्माण इकाइयों पर राज्य के व्यापार कानून लागू नहीं होते हैं ।
ये इकाइयां एक केंद्रीय सुविधा बनाने के लिए शुल्क (ड्यूटी) का भुगतान किए बिना कुछ विनिर्दिष्ट वस्तुएं डीटीए से खरीद सकती हैं। सॉफ्टवेयर ईओयू / डीटीए इकाइयां सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए इस केंद्रीय सुविधा का इस्तेमाल कर सकती हैं। रत्न एवं आभूषण संबंधी निर्यातोन्मुख इकाइयां नामित एजेंसियों से सोने / चांदी / प्लैटिनम आदि की ऋण पर / नकद खरीद सकती हैं। सेवा इकाइयों को छोड़कर अन्य ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयां स्टेट क्रेडिट (यदि कोई है) तथा खरीदार के एस्क्रो रुपया खाते के एवज में रूस को भारतीय रुपए में निर्यात कर सकती हैं। हालाँकि यह आरबीआई से मंजूरी के अधीन है / निर्यातों के एफओबी मूल्य के 5% तक के पुर्जों की खरीद उसी कंसाइनी / खरीदार को निर्यात करने हेतु की जा सकती है। ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयों को सेकेंड हैंड मशीनरी का आयात करने की अनुमति है।
ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयां अपने उत्पादन का एक निश्चित हिस्सा डीटीए में रियायती दर पर बेच सकती हैं। निर्यातोन्मुख इकाइयों द्वारा डीटीए में किए गए डीम्ड एक्सपोर्ट की कुछ निश्चित श्रेणियों और अन्य आपूर्तियों की गणना निवल विदेशी मुद्रा आय के लिए की जाती है। डीटीए से विनिर्मित वस्तुओं की ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयों को आपूर्ति को डीम्ड एक्सपोर्ट माना जाता है। ऐसी वस्तुओं पर लगा केंद्रीय बिक्री कर रिफंड कर दिया जाता है।
सरकार सामान्यतया निम्नलिखित कारणों से आयात तथा निर्यात पर प्रतिबंध लगाती है :
तथापि, कीमतों में स्थिरता रखने, अंतरराष्ट्रीय वचनबद्धताओं को पूरा करने तथा देशी उत्पादकों के हितों का संरक्षण करने आदि जैसी कुछ स्थितियों में भी सामान्यत: अस्थायी अवधि के लिए प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
विदेश व्यापार (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1992 केन्द्र सरकार को विदेश व्यापार नीति अधिसूचित करने का अधिकार प्रदान करता है। तदनुसार, वाणिज्य मंत्रालय ने 2015-20 की अवधि के लिए विदेश व्यापार नीति अधिसूचित की है। इसके अलावा, सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 के अंतर्गत भी आयात तथा निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगाये गए हैं।
अधिकांश मदें किसी लाइसेंस / प्राधिकरण के बिना निर्यात या आयात की जा सकती हैं, लेकिन कुछ मदों के लाइसेंस / प्राधिवार के बिना निर्यात या आयात की अनुमति कतिपय निर्धारित शर्तों के पूरा करने पर ही दी जाती है। कुछ मदों का आयात या निर्यात निषिद्ध है। कुछ मदें सामान्यत: सिर्फ सरकारी उद्यमों द्वारा ही आयात या निर्यात की जा सकती हैं और कुछ मदों के आयात या निर्यात की अनुमति सिर्फ लाइसेंस / प्राधिवार पर ही दी जाती है। सभी प्रकार के माल के लिए आयात / निर्यात नीतियां आयात तथा निर्यात के लिए भारतीय व्यापार वर्गीकरण प्रणाली में हरेक मद के सामने सूचित की गई हैं, जिन्हें सामान्यत: आईटीसी (एचएस) के रूप में जाना जाता है। आईटीसी (एचएस) की अनुसूची–1 में आयात नीति व्यवस्था दी गई है, जबकि आईटीसी (एचएस) की अनुसूची-2 में निर्यात नीति व्यवस्था की जानकारी दी गई है।
इसके अलावा, देशी रूप से उत्पादित माल के लिए लागू देशी कानून / नियम / आदेश / विनियम / तकनीकी विनिर्देशन / पर्यावरण / सुरक्षा तथा स्वास्थ्य मानदंड भी आयात के लिए यथोचित परिवर्तनों के साथ लागू होते हैं, जब तक उन्हें अन्यथा विशिष्ट रूप से छूट प्राप्त न हो। इसके अलावा, अन्य मंत्रालयों / प्राधिकारियों द्वारा भी उत्पाद विशिष्ट प्रतिबंध या शर्तें लगायी जा सकती हैं। उदाहरण के तौर पर स्वास्थ्य, पर्यावरण या कृषि से संबंधित कार्य देखने वाले मंत्रालय स्वयं भी प्रतिबंध लगा सकते हैं।
सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 के अंतर्गत अधिकांश मदों पर आयात शुल्क लगाया जाता है। कुछ मदों पर निर्यात शुल्क भी लगाया जाता है। इनके विवरण सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 की अनुसूची–1 तथा 2 में दिए गए हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत, डम्पिंग-रोधी सुरक्षा तथा एंटी-सब्सिडी प्रतिकारी शुल्क भी कुछ मदों पर लगाये गए हैं। विभिन्न कानूनों के अंतर्गत कुछ मदों पर उत्पाद विशिष्ट शुल्क भी लगाये जाते हैं।
आयात तथा निर्यात पर लगाये गए प्रतिबंध सामान्यत: सीमा-शुल्क विभाग द्वारा सीमाओं पर प्रवर्तित किए जाते हैं जो पोर्टों, हवाई-अड्डों, स्थल सीमा-शुल्क केन्द्रों तथा विदेशी डाकघरों में प्रवेश तथा निकास बिन्दुओं का प्रबंध करते हैं जिनके माध्यम से माल देश के भीतर पहुंचता है या देश से बाहर जाता है। सीमा-शुल्क अधिकारी न केवल शुल्क वसूल करते हैं, बल्कि कार्गो, बैगिज, डाक वस्तुओं के आयात तथा निर्यात और पोतों, विमानों आदि के आगमनम एवं प्रस्थान को नियंत्रित करने वाले विभिन्न प्रावधानों को भी प्रवर्तित करते हैं। उनके कार्यों में विभिन्न विधिक अधिनियमों के अंतर्गत आयात तथा निर्यात पर निषेधों तथा प्रतिबंधों का प्रवर्तन, मादक औषध (ड्रग) अवैध व्यापार निषेध तथा अंतरराष्ट्रीय यात्री क्लियरेंस सहित तस्करी की रोकथाम शामिल है।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) विशिष्ट रूप से वर्णित एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसे कतिपय आर्थिक कानूनों के प्रयोजनार्थ विदेशी क्षेत्र माना जाता है। इसके पीछे प्रमुख सोच विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने में सहायता करना है और अधिसूचित क्षेत्रों में प्रोत्साहनों का एक पैकेज प्रदान करना है जहां विनिर्माता, सेवा प्रदाता तथा व्यापारी झंझट-मुक्त वातावरण में परिचालन कर सकें और निर्यात को बढ़ावा दे सकें। इस दिशा में एसईजेड अधिनियम, 2005 को अधिनियमित किया गया और एसईजेड नियम, 2006 अधिसूचित किए गए। उत्पाद शुल्क, सेवा कर, केंद्रीय बिक्री कर, मूल्य योजित कर, आयकर आदि से संबंधित कई अन्य सम्बद्ध कानूनों को एसईजेड डेवलपरों, जो आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण तथा रखरखाव करते हैं और एसईजेड के भीतर प्रसंस्करण क्षेत्रों में परिचालन करने वाली एसईजेड इकाइयों को आवश्यक प्रेरणा प्रदान करने के लिए उपयुक्त रूप से संशोधित भी किया गया है।
एसईजेड अधिनियम, 2005 में वर्णित मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
यथा 2 सितंबर 2016 को 406 एसईजेड के लिए औपचारिक अनुमोदन प्रदान किए गए हैं जिनमें से 328 अधिसूचित किए गए हैं और 204 परिचालनरत हैं जहां 4,166 इकाइयां लगायी गई हैं। एसईजेड में निवेश कुल 3,76,494 करोड़ रुपये रहा। इन क्षेत्रों में 15,91,381 व्यक्तियों को रोजगार मिला है। एसईजेड इकाइयों का निर्यात 2015-16 में 4,67,337 करोड़ रुपये रहा।
निर्यातोन्मुख इकाइयाँ (ईओयू) एक ऐसा शब्द है जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (ईएचटीपी), सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (एसटीपी) तथा बायो टेक्नोलॉजी पार्क (बीटीपी) के लिए विशेष योजनाओं के अंतर्गत स्थापित इकाइयों को सामूहिक रूप से निर्दिष्ट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। ये अपने संपूर्ण उत्पादन का निर्यात करने का वचन देती हैं (देशी प्रशुल्क क्षेत्र (डीटीए) में अनुमत बिक्री को छोड़कर)। ये इकाइयां मरम्मत, पुनर्निर्माण, रीकंडीशनिंग, रीइंजीरियरिंग, सेवा क्षेत्र, साफ्टवेयर विकास, कृषि प्रसंस्करण सहित कृषि, मत्स्यपालन, पशुपालन, बायो-टेक्नोलॉजी, पुष्पकृषि, बागबानी, कृमिपालन, पोल्ट्री तथा रेशम कीटपालन सहित माल के निर्माण में लगी होनी चाहिए। इन योज नाओं के अंतर्गत ट्रेडिंग इकाइयां शामिल नहीं हैं।
इन योजनाओं का उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना, विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि करना, निर्यात उत्पादन के लिए निवेश आकर्षित करना और रोजगार का सृजन करना है। इन इकाइयों को प्रोत्साहनों का एक विशेष पैकेज प्रदान किया जाता है। यह पैकेज उन्हें मुख्यत: शुल्क-मुक्त इंक्लेव मानता है जिन्हें देश में कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। कुछ क्षेत्रों के जहां उच्चतर मूल्य योजन अपेक्षित है को छोड़कर ईओयू / ईएचटीपी / बीटीपी इकाइयां निवल विदेशी मुद्रा अर्जक होनी चाहिए, हाल तक, अधिकांश ईओयू से बांडेड वेयरहाउस के रूप में कार्य करना अपेक्षित था, किंतु अब यह अपेक्षा खत्म कर दी गयी है।
देशी प्रशुल्क क्षेत्र (डीटीए) एसईजेड तथा ईओयू से भिन्न अन्य सभी क्षेत्रों से संबंधित है। डीटीए इकाइयों पर निर्यात करने की तब तक कोई बाध्यता नहीं होती है, जब तक कि वे निर्यात उत्पादन के लिए कोई शुल्क-मुक्त निविष्टि या शुल्क-मुक्त पूंजीगत माल प्राप्त नहीं करती हैं। उन पर इस बात का कोई प्रतिबंध नहीं होता है कि वे डीटीए में कितना बेच सकती हैं। डीटीए के भीतर पूर्वोत्तर, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर तथा उत्तराखंड में विनिर्माताओं को कुछ विशेष रियायतें तथा प्रोत्साहन जैसे उत्पाद-शुल्क छूट या रिफंड मिलता है।
आयातक–निर्यातक कोड (आईईसी) आयात या निर्यात करने के इच्छुक व्यक्ति को आबंटित 10 अंकों का एक अल्फ़ा न्यूमेरिक कोड होता है। आईईसी नंबर प्राप्त किए बिना किसी व्यक्ति द्वारा कोई निर्यात या आयात नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक सूचना सं। 1 दिनांक 1।4।2015 के जरिए विदेश व्यापार महानिदेशक (डीजीएफटी) द्वारा अधिसूचित प्रक्रिया पुस्तिका, खंड-1 (एच बी 1) के पैरा 2।07 में सूचीबद्ध कतिपय आयातकों या निर्यातकों https://dgft.gov.in/sites/default/files/ftproc17-051217 लिंक देखें) की श्रेणियों को आईईसी प्राप्त करने से छूट प्राप्त है।
आयातकों तथा निर्यातकों की कुछ श्रेणियों को डीजीएफटी द्वारा स्थायी आईईसी भी प्रदान किया जाता है, जैसाकि एचबी-1 के पैरा 2।08 में सूचीबद्ध है। उन्हें अलग से आईईसी प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे उन्हें दिए गए स्थायी आईईसी का प्रयोग कर सकते हैं। मोटे तौर पर इन श्रेणियों में केन्द्र या राज्य सरकार, उनके पूर्ण या आंशिक स्वामित्व वाली एजेंसियां (वाणिज्यिक संगठनों से भिन्न), अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए आयात करने वाले व्यक्ति / अस्पताल /या संस्थाएं (जो व्यापार से न जुड़ी हों), निर्दिष्ट सीमा तक नेपाल, म्यांमार, चीन आदि के साथ स्थल द्वारा सीमा-पार व्यापार में लगे व्यक्ति तथा इसी प्रकार अन्य शामिल हैं।
ई-आईईसी आवेदन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश https://dgft.gov.in/sites/default/files/ft17-051217.pdf र पैरा उपलब्ध है। पैरा 2.05 से 2.15 में आईईसी की प्रक्रिया दी गई है।
आईईसी प्राप्त करने के लिए आपके पास आयकर विभाग से जारी स्थायी लेखा संख्या (पैन) होना चाहिए। आपको अपने पैन पर एक से अधिक आईईसी नहीं मिल सकता है। आपको आईईसी आवेदन में अपनी सभी शाखाओं, डिविजनों, फैक्टरियों की सूची देनी होगी।
ई-आईईसी आवेदन विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी- dgft.gov.in) पर किया जा सकता है। आवेदक अपने दस्तावेज अपलोड कर सकते हैं और आवश्यक फीस का भुगतान नेट बैंकिंग के जरिए कर सकते हैं। तथापि, आवेदक को अपना विधिवत डिजिटल हस्ताक्षरित आवेदन ऑनलाइन प्रस्तुत करना चाहिए। डीजीएफटी के क्षेत्रीय प्राधिकरण द्वारा ऐसे आवेदनों पर ऑनलाइन ही कार्रवाई की जाती है और डिजिटल हस्ताक्षरित ई-आईईसी आवेदक को दो कार्यदिवसों के भीतर जारी / ईमेल कर दिया जाता है। यदि आवेदन अधूरा होता है या किसी अन्य कारण से अयोग्य होता है तो इसे खारिज कर दिया जाता है और खारिज किए जाने के कारणों सहित इसकी सूचना पत्र / ईमेल के माध्यम से आवेदक को भेज दी जाती है। ई-आईईसी जारी करने के लिए आवेदन ईबिज प्लेटफॉर्म (www.ebiz.gov.in) से भी किया जा सकता है।
आईईसी प्राप्त करने के लिए आवेदन लागू शुल्क और आवश्यक दस्तावेजों के साथ एएनएफ 2 ए में ऑनलाइन दायर किया जा सकता है। आईईसी सिस्टम ऑटो जनरेटेड होगा और आवेदक को ई-मेल और एसएमएस के माध्यम से सूचित किया जाएगा कि एक कंप्यूटर उत्पन्न ई-आईईसी अपनी पंजीकृत ईमेल आईडी पर उपलब्ध है। आईईसी मॉड्यूल में लॉग इन करके आवेदन जमा करने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आवेदक अपने ई-आईईसी को देख और प्रिंट कर सकता है।
आईईसी आवेदन के साथ आवेदकों को निम्नलिखित विवरण / दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन आवेदन जमा करने की आवश्यकता है (आपकी स्कैन की गई प्रतियां जमा / अपलोड करनी हैं):
दिशानिर्देशों के अनुसार आरए ऑनलाइन आईईसी के बाद सत्यापन का संचालन करेंगे।
एचबी–1 के परिशिष्ट - 2 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, आईईसी आवेदन के लिए निर्धारित फीस () इलेक्ट्रॉनिक रूप में अदा की जानी चाहिए। आवेदक को अपने अधिकार क्षेत्र का क्षेत्रीय अधिकारी सूचित करना होगा जो आवेदन की प्रोसेसिंग करेगा। डीजीएफटी के क्षेत्रीय प्राधिकारियों और उनके-क्षेत्र की सूची एचबी–1 के परिशिष्ट–1ए में दी गई है।
आईईसीएस / ई-आईआईसीसी में संशोधन केवल ऑनलाइन दानकर्ता हो सकता है। उनके आईईसी / ई-आईईसी में संशोधन की मांग करने वाले आवेदक dgft.nic.in पर लॉग ऑन कर सकते हैं और त्वरित लिंक के तहत आयातक निर्यातक कोड (आईसीसी) पर क्लिक कर सकते हैं और अपने ई-आईसीएस और आईसीएस को भौतिक प्रारूप में संशोधित करने के लिए "अपना आईसीसी संशोधित करें" का चयन कर सकते हैं। आवेदक शुल्क और आवश्यक दस्तावेज
निर्यात संवर्धन परिषदें भारतीय निर्यात को विकसित करने तथा बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित निर्यातकों का एक संगठन है। इनमें से अधिकांश वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रायोजित संगठन हैं। सलाहकारी निकाय के रूप में वे सरकार की नीतियों में सक्रिय रूप से योगदान देते हैं और निर्यातकों तथा सरकार के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करते हैं।
वर्तमान में, कुल 29 निर्यात संवर्धन परिषदें (ईपीसी), 6 कमोडिटी बोर्ड तथा 2 निर्यात विकास प्राधिकरण हैं जो निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदायी हैं। एचबी – 1 के परिशिष्ट 2टी में दिए गए रूप में उत्पादों / परियोजनाओं / सेवाओं के विशिष्ट समूह के लिए एक निर्यात संवर्धन परिषद है। भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (एफआईईओ) इन संगठनों का शीर्ष निकाय है। कॉफी, कॉयर, नारियल, मसाला, तम्बाकू तथा चाय हेतु कमोडिटी बोर्ड निर्यात संवर्धन से आगे तक जाते हैं। वे उत्पादकता में वृद्धि तथा उत्पाद विशाखन पर फोकस के साथ अपने उत्पादों के लिए देश में एकीकृत विकास, खेती तथा उद्योग पर विशेष ध्यान देते हैं। इनमें से कुछ विभिन्न मंत्रालयों द्वारा स्थापित किए गए है, उदाहरण के तौर पर, नारियल विकास बोर्ड की स्थापना कृषि मंत्रालय द्वारा की गई है।
एफटीपी के अंतर्गत किसी लाभ या रियायत के लिए आवेदन करने वाले किसी भी व्यक्ति को जब तक एफटीपी के अंतर्गत अन्यथा विशिष्ट रूप से छूट प्राप्त न हो, एचबी–1 में निर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार निर्यात संवर्धन परिषद बोर्ड के सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूर पंजीकरण सह सदस्यता प्रमाणपत्र (आरसीएमसी) प्रस्तुत करना होगा या उसे डीजीएफटी की वेबसाइट पर आयातक–निर्यातक प्रोफाइल में अपलोड करना होगा। मसाला बोर्ड द्वारा जारी मसाले के निर्यातक के रूप में पंजीकरण प्रमाणपत्र (सीआरईएल) को एफटीपी के प्रयोजनार्थ आरसीएमसी माना जाता है। उत्पाद-शुल्क कानून के अंतर्गत भी आरसीएमसी धारित करने वाले मर्चेंट निर्यातक को उस बांड के समर्थन में स्योरिटी या सिक्यूरिटी प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती है जिसे वह ड्यूटी का भुगतान किए बिना विनिर्माता के परिसर से निर्यात माल उठाने के लिए देता है।
अधिकांश ईपीसी नियमित आधार पर देश तथा विदेश दोनों में संवर्धनात्मक कार्यक्रम चलाते हैं इनमें चुनिंदा देशों के लिए उत्पाद विशिष्ट प्रतिनिधि मंडल भेजना, भारतीय प्रदर्शनियों का आयोजन, विशेषीकृत व्यापार मेलों में देश की सहभागिता, कैटलॉग प्रदर्शनी, क्रेता – विक्रेता बैठकों का आयोजन, उत्पाद विशिष्ट सेमिनार तथा सम्मेलनों का आोजन आदि प्रमुख है। इनमें से कुछ के कार्यालय विदेशों में स्थित हैं। वे विदेशों में कारोबारी दौरों के लिए विजा में सहायता प्रदान करते हैं, सदस्यों को पत्रिकाएं भेजते हैं जिनमें सार्वभौमिक निविदाएं, परियोजनाएं, पूछताछ, सरकारी अधिसूचनाएं, बाजार रिपोर्टें, फॉरेक्स दरें, स्टील की कीमतें आदि के बारे में जानकारी होती है इसके साथ ही; व्यापार अवसरों पर सूचनाएं तथा निविदाओं सहित, निर्यातक की वेबसाईट को होस्ट / हाइपर लिंक करते हुए अपनी वेबसाईट के माध्यम से अपने सदस्यों के उत्पादों के लिए विश्वव्यापी कवरेज प्रदान करते हैं और मार्केटिंग, प्रदर्शनियों आदि के लिए सरकारी सब्सिडी प्राप्त करने में अपने सदस्यों की सहायता करते हैं।
कमोडिटी बोर्ड एक कदम और आगे जाते हैं। उदाहरण के लिए, नारियल विकास बोर्ड नारियल की खेती तथा उद्योग में लगे लोगों को तकनीकी सलाह देता है, नारियल के अंतर्गत रकबे में विस्तार के लिए वित्तीय तथा अन्य सहायता प्रदान करता है, नारियल तथा उसके उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, नारियल तथा उसके उत्पादों के विपणन में सुधार लाने और नारियल तथा उसके उत्पादों के आयात तथा निर्यात को विनियमित करने के उपायों की सिफारिश करता है, नारियल तथा उसके उत्पादों के लिए ग्रेडिंग, विनिर्देशन तथा मानक नियत करता है, नारियल का उत्पादन बढ़ाने के लिए तथा नारियल की गुणवत्ता और पैदावार में सुधार लाने के लिए उपयुक्त योजनाओं का वित्तपोषण करता है।
इसलिए लगभग सभी निर्यातक किसी न किसी ईपीसी से आरसीएमसी अवश्य प्राप्त करते हैं।
सीमा-शुल्क क्षेत्र में उतारे गए सभी आयातित माल के संबंध में सीमा-शुल्क आयुक्त को एक अभिरक्षक (कस्टोडियन) नियुक्त करना होता है जिसकी अभिरक्षा में आयातित माल घरेलू उपयोग के लिए निकासी किए जाने तक या कानून में उपबंधित रूप में गोदाम में रखे जाने या वाहनांतरित किए जाने तक रहेंगे।
कस्टोडियन से यह अपेक्षित है कि वह कैरियर से आयातित माल का प्रभार ग्रहण करे, उसके उचित भंडारण तथा सुरक्षा की व्यवस्था करे और आयातकों द्वारा सभी सीमा-शुल्क औपचारिकताओं को पूरा करने, आवश्यक शुल्क तथा अन्य प्रभारों / शुल्कों का भुगतान करने और अन्य दायित्वों को पूरा करने के बाद ही माल की निकासी की अनुमति दे।
सीमा-शुल्क अधिनियम,1962 अभिरक्षकों को बाध्य करता है कि वे आयातित माल की सुपुर्दगी तक सुरक्षित अभिरक्षा सुनिश्चित करें। यदि उनकी अभिरक्षा में माल की चोरी हो जाती है तो अभिरक्षक को ऐसे माल पर शुल्क का भुगतान करना होगा।
सीमा-शुल्क आयुक्त द्वारा नियुक्त अभिरक्षकों के अलावा, सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 किसी अन्य कानून के अंतर्गत यथा उपबंधित रूप में अन्य अभिरक्षकों को भी मान्यता प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, मुंबई पोर्ट ट्रस्ट प्रमुख पत्तन न्यास अधिनियम, 1963 के अंतर्गत एक विधिक अभिरक्षक है।
कंटेनरकृत परिवहन की वृद्धि को देखते हुए देश के अंत: क्षेत्रों में सीमा-शुल्क मंजूरी की सुविधा भी विभिन्न अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (आईसीडी) खोलकर प्रदान की गई है। आई सी डी एक प्रकार के शुष्क पोर्ट हैं और यहां भी माल सीमा-शुल्क की अदायगी किए जाने तक अभिरक्षक के पास रहता है।
सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों में विभिन्न पोर्ट ट्रस्ट तथा अन्य प्राधिकरण विभिन्न पोर्टों, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों / आईसीडी में उनकी अभिरक्षा में रखे गए आयात तथा निर्यात कार्गो को संचालित करते हैं। अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों में कार्गो संचालन तथा अभिरक्षा सामान्यत: भारतीय अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (आईएएआई) को सौंपी जाती है किंतु आईएएआई द्वारा निजी क्षेत्र को या इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र की प्रत्यक्ष संस्था को ऐसी सुविधा पट्टे पर देने की प्रवृत्ति आज कल काफी बढ़ी है।
अधिकतम आयात तथा निर्यात कार्गो विभिन्न समुद्री पोर्टों पर निपटाये जाते हैं और कंटेनरकृत कार्गो परिवहन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। न्हावा शेवा जैसे प्रमुख पोर्टों पर उतारे गए आयात कार्गो को आंतरिक आईसीडी के जरिए क्लियरेंस के लिए आयातकों के द्वार पर भेजा जाता है। चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि कार्गो में पिल्फ्रेज / चोरी न हो। विभिन्न गोदियों में अलग-अलग लंगरों पर कार्गो की लदाई तथा उतराई की व्यवस्था, कंटेनर यार्ड / भंडारण गोदामों आदि सहित विभिन्न स्थानों पर उनकी आवा-जाही का प्रबंध पोर्ट प्राधिकारियों द्वारा किया जाता है।
सीमा-शुल्क प्राधिकारियों को आयात तथा निर्यात के संबंध में अपने कार्यों, जैसे जहाजों / विमानों आदि पर माल की लदाई / उतराई का पर्यवेक्षण, कंटेनरों को भरने या खाली करने का पर्यवेक्षण, सीमा-शुल्क निकासी औपचारिकताओं से पहले आयातित / निर्यात के लिए प्रस्तुत माल का निरीक्षण तथा जांच आदि को पूरा करने के लिए गोदी क्षेत्रों में तथा अंतरराष्ट्रीय कार्गो कॉम्प्लेक्सों / आईसीडी आदि में उपयुक्त कार्यालय स्थान तथा आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इस प्रयोजन के लिए तथा सीमा-शुल्क क्षेत्र में कार्गो के संचालन, प्राप्ति , भंडारण तथा परिवहन के लिए अभिरक्षकों तथा कार्गो सेवा प्रदाताओं (सीसीएसपी) के लिए व्यापक दिशानिर्देश प्रदान करने के लिए केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा-शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने सीमा-शुल्क क्षेत्र में कार्गो संचालन विनियम, 2009 तैयार किया है।
कस्टम हाउस एजेंटों को सीमा-शुल्क ब्रोकर कहा जाता है। ये सीमा-शुल्क से पहले आयातकों तथा निर्यातकों का प्रतिनिधित्व करते हैं और माल के आयात तथा निर्यात के लिए सीमा-शुल्क विभाग से मंजूरी प्राप्त करते हैं। वे आयातकों की ओर से माल के आयात के लिए आयात-पत्र दाखिल करते हैं और माल के निर्यात के लिए निर्यातकों की ओर से शिपिंग बिल या निर्यात-पत्र दाखिल करते हैं। वे कैरियरों (शिपिंग कंपनियां, एयरलाइन आदि) से आयातित माल के लिए सुपुर्दगी आदेश प्राप्त करना, अभिरक्षकों से माल की सुपुर्दगी लेना तथा आयातकों के परिसर के लिए माल के परिवहन की व्यवस्था करना जैसी सम्बद्ध सेवाएं भी प्रदान करते हैं। इसी प्रकार वे निर्यातकों द्वारा भेजे गए निर्यात माल की ट्रान्सपोर्टरों से डिलीवरी लेते हैं, गोदी में ले जाने की व्यवस्था करते हैं और शिपरों को भेजते हैं। अधिकांश आयातक तथा निर्यातक सीमा-शुल्क विभाग के माध्यम से कार्गो के आयात तथा निर्यात की मंजूरी का कार्य सीमा-शुल्क ब्रोकरों से आउटसोर्स करते हैं।
कस्टम ब्रोकरों का अच्छा तकनीकी ज्ञान तथा आयात एवं निर्यात से संबंधित कानूनों की जटिलताओं की जानकारी होनी जरूरी है। इसलिए ऐसे व्यक्ति जो सीमा-शुल्क ब्रोकर के रूप में कार्य करना चाहते हैं या कारोबार करना चाहते हैं या उनके कर्मचारी भी जो कस्टम्स के साथ संवाद करते हैं, उन्हें कस्टम विभाग द्वारा आयोजित परीक्षा उत्तीर्ण करने सहित आवश्यक प्रतिभूति प्रस्तुत करनी होगी तथा सीमा-शुल्क विभाग से लाइसेंस प्राप्त करना होगा। सीमा-शुल्क ब्रोकर्स लाइसेंसिंग विनियम, 2013 में पात्रता मानदंड, परीक्षा हेतु प्रक्रिया तथा लाइसेंस की मंजूरी प्रक्रिया, प्रस्तुत की जाने वाली प्रतिभूति, सीमा-शुल्क ब्रोकर के दायित्व तथा सीमा-शुल्क ब्रोकर द्वारा व्यक्तियों के नियोजन हेतु अनुशासन आदि का प्रावधान है।
सीमा-शुल्क ब्रोकर के कुछ महत्वपूर्ण दायित्व निम्नानुसार हैं:
इस प्रकार, सीमा-शुल्क ब्रोकर आयात तथा निर्यात की आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। कुछ आयातक या निर्यातक कुशल एवं भरोसेमंद सीमा-शुल्क ब्रोकरों की सहायता के बिना अपना आयात – निर्यात कारोबार करने की परिकल्पना नहीं कर सकते।
आयात तथा निर्यात को विनियमित करने और उन पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 वाहकों (कैरियरों) पर कुछ दायित्व डालता है। इस प्रकार, उन्हें देश में आयातित कार्गो को उतराई के लिए सिर्फ अधिसूचित पोर्टों / हवाई अड्डों / स्थल सीमा-शुल्क केन्द्रों पर लाना होगा और उस विशिष्ट पोर्ट / अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतराई के लिए लाये गए माल तथा आगे दूसरे पोर्टो / हवाई अड्डों पर ले जाये जाने वाले माल के बारे में सीमा-शुल्क विभाग को विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करनी होगी।
कस्टम स्टेशन में पोत / विमान के आगमन से पूर्व ‘’आयात सामान्य मालसूची ‘’ (आईजीएम) में ऐसे कार्गो की घोषणा की जानी चाहिए। स्थल सीमा-शुल्क स्टेशनों के माध्यम से आयात के मामले में वाहन का प्रभार रखने वाले व्यक्ति को उसके पहुंचने के 12 घंटे के भीतर इसी प्रकार की आयात रिपोर्ट देनी होगी। आईजीएम में चार भाग होते हैं – देशी निकासी के लिए कार्गो, दूसरे पोर्ट के लिए परिवहन हेतु कार्गो, पोत- भंडार तथा उसी तल रखने के लिए कार्गो जो पोत में रहेगा।
चूंकि कार्गो निकासी औपचारिकताएं सामान्यत: किसी पोत द्वारा लाये जा रहे कार्गो की पोर्ट पर उतराई के बारे में सूचना से जुड़ी होती हैं इसलिए, यदि किसी पोर्ट के लिए संबंधित कार्गो के सभी विवरण पोत के पहुंचने से पहले उपलब्ध होने आईजीएम पहले फाइल किया जाना चाहिए। अंतिम आईजीएम पोत के पहुंचने के बाद फाइल किया जा सकता है। आई जी एम की विधिवत प्राप्ति के बाद सीमा-शुल्क विभाग के निवारण प्राधिकारियों के पर्यवेक्षण में उतराई शुरू होती है। कानून में ऐसे किसी सीमा-शुल्क स्टेशन पर माल की उतराई निषिद्ध है जिसका उल्लेख आईजीएम या आयात रिपोर्ट में नहीं है।
इसी प्रकार कोई भी पोत / विमान निर्यात के लिए माल की लदाई तब तक शुरू नहीं कर सकता है जब तक सीमा-शुल्क विभाग को उसकी सूचना नहीं दी जाती है और लदान के लिए उसकी अनुमति प्राप्त नहीं होती है इस अनुमति पत्र को लदान पत्र पर “लेट एक्सपोर्ट ऑर्डर” भी कहा जाता है। पोतों / विमानों आदि पर कार्गो के लदान का सीमा-शुल्क प्राधिकारियों द्वारा जांच और पर्यवेक्षण किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि लदान किए गए कार्गो ने निर्धारित सीमा-शुल्क औपचारिकताओं जैसे शुल्क या कर, जहां लागू हो, के भुगतान सहित कानून द्वारा निर्धारित अन्य औपचारिकताओं को पूरा किया है और निर्यात के लिए सीमा-शुल्क निकासी औपचारिकताओं संबंधी प्राधिकार उचित अधिकारी द्वारा विधिवत दिया गया है।
पोत / विमान के प्रभारी को एक निर्धारित फॉर्म, जिसे “निर्यात सामान्य मालसूची” (ईजीएम) कहा जाता है, में पोत / विमान में लादे गए समस्त माल के विवरण प्रस्तुत करने होते हैं। इसी प्रकार वाहन के प्रभारी को “निर्यात रिपोर्ट “ नामक एक प्रकार की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए। ईजीएम / निर्यात रिपोर्ट पोत /विमान / वाहन के प्रस्थान करने से पूर्व प्रस्तुत की जानी चाहिए इसे पोतलदान / निर्यात के प्रमाण के रूप में माना जाता है।
जब तक आईजीएम निर्धारित प्ररूप में प्रस्तुत नहीं किया जाती है, सामान्य परिस्थितियों में किसी पोत / विमान / वाहन से कार्गो की कोई उतराई शुरू नहीं की जा सकती है। अतः तब तक आयातक सीमा-शुल्क विभाग से मंजूरी प्राप्त नहीं कर सकते हैं या आयातित कार्गो की डिलीवरी प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार जब तक ईजीएम फाईल नहीं किया जाता है, ड्यूटी ड्रॉ बैक जैसे लाभ निर्यातकों को दिए नहीं जा सकते हैं। इस प्रकार आईजीएम / ईजीएम का प्रस्तुतीकरण आयात / निर्यात के लिए अनिवार्य है।
वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात तथा आयात मदों के लिए वर्गीकरण का भारतीय व्यापार वर्गीकरण (एच एस) जारी किया है जिसे आईटीसी (एचएस) के रूप में जाना जाता है। आईटीसी (एचएस) प्रणाली को विश्व सीमा-शुल्क संगठन (http://www।wcoomd।org) द्वारा जारी अंतरराष्ट्रीय नामावली सामंजस्यीकृत प्रणाली (एचएसएन) के साथ 6 अंकीय स्तर पर समनुरूपित किया गया है। तथापि आईटीसी (एचएस) 8/10 अंक स्तर पर है जिसे htpp://dgft।gov।in से डाउनलोड किया जा सकता है। आईटीसी (एचएस) की अनुसूची 1 में आयात नीति व्यवस्था का प्रावधान करती है।
आईटीसी (एचएस) वर्गीकरण में पण्यों / उत्पादों को एक निश्चित पैटर्न में व्यवस्थित किया जाता है, जिनमें से हरेक के सामने ‘मुक्त’, ‘प्रतिबंधित’, एसटीई (राज्य व्यापार) या ‘निषिद्ध’ का उल्लेख होता है। आईटीसी (एचएस) में 21 खंड तथा 99 अध्याय हैं। एक खंड कई अध्यायों से युक्त एक समूह है जो माल के किसी विशिष्ट वर्ग को सूचीबद्ध करते हैं। अध्याय में चार अंकीय, छ: अंकीय तथा आठ अंकीय स्तरों पर व्यवस्थित पण्यों का संक्षिप्त विवरण होता है। प्रत्येक चार अंकीय कोड को ‘शीर्षक’ कहा जाता है और प्रत्येक छ: अंकीय कोड को ‘उप-शीर्षक’ कहा जाता है और प्रत्येक 8 या 10 अंकीय कोड को एक्ज़िम कोड कहा जाता है। हरेक अध्याय में माल के क्रम का स्वरूप, प्राकृतिक उत्पाद, कच्चा माल, अर्द्ध तैयार माल / वस्तु / मशीनरी आदि के अनुक्रम में पण्यों / उत्पादों के निर्माण की बढ़ती मात्रा में है। उदाहरण के लिए कॉटन पर अध्याय अपरिष्कृत कॉटन से शुरू होता है और यार्न, फैब्रिक तथा मेड अप्स तक जाता है। आईटीसी (एचएस) आयात नीतियां में हरेक 4 / 6 / 8 / 10 अंकीय एक्जिम कोड के सामने सूचित की जाती हैं।
अत: किसी मद के लिए आयात नीति के लिए पहले संबंधित कोड में जाकर, उसके बाद अध्याय, उसके बाद शीर्षक, उसके बाद उप-शीर्षक, उसके बाद एक्जिम कोड में जाना होता है जहां उसके सामने ‘मुक्त’, ‘प्रतिबंधित’, ‘निषिद्ध’ या ‘एसटीई’ (राज्य व्यापार) के रूप में आयात नीति दी गई रहती है।
आईटीसी (एचएस) में किसी पण्य के लिए या तो चार अंकीय, छ: अंकीय या आठ अंकीय स्तर पर किसी विशिष्ट शीर्षक / उप शीर्षक पर पहुंचने की प्रक्रिया “वर्गीकरण” कहलाती है। खंडों तथा अध्यायों के शीर्षक सिर्फ संदर्भ के लिए दिए गए हैं। कानूनी प्रयोजनों के लिए किसी मद के वर्गीकरण का निर्धारण करने के लिए खंड नोटों, अध्याय नोटों, उप शीर्षकों, अनुपूरक नोटों के पाठ, शीर्षक, उप शीर्षक तथा आईटीसी (सीएस) की व्याख्या हेतु सामान्य नियम का आश्रय लिया जाना चाहिए। आईटीसी (एचएस) में माल के वर्गीकरण के लिए 6 नियम हैं। इन नियमों का प्रयोग अनुक्रमिक रूप में किया जाना चाहिए। इसके अलावा, मदों के एक विस्तृत समूह के लिए कुछ प्रतिबंधों को शामिल करते हुए आईटीसी (एचएस) के प्रारंभ में कुछ सामान्य नोट दिए गए हैं। प्रत्येक अध्याय में शामिल की गई मदों के लिए नीति हरेक अध्याय के अंत में दी गयी है। कोई संदेह होने पर, डब्ल्यूसीओ द्वारा प्रकाशित एचएसएन पर व्याख्यात्मक टिप्पणियों, डीजीएफटी या सीबीईसी द्वारा दिए गए स्पष्टीकरणों या वर्गीकरण पर किसी निर्णय का भी संदर्भ लिया जा सकता है।
‘मुक्त’ का अर्थ है, उस मद का आयात करने के लिए कोई लाइसेंस या अनुमति आवश्यक नहीं है। किन्तु यदि आईटीसी (एचएस) उस मद के आयात के लिए कोई शर्त नियत करता है तो उन शर्तों का पालन करना होगा। ‘प्रतिबंधित’ का अर्थ है, मद डीजीएफटी द्वारा जारी लाइसेंस या अनुमति पर ही आयात की जा सकती है। एसटीई का अर्थ है, मद के आयात के लिए नामित राज्य व्यापार उद्यम (जैसे एसटीपी, एमएमटीसी ) द्वारा उस मद का आयात किया जा सकता है। ‘निषिद्ध’ का अर्थ है कि मद का आयात बिल्कुल नहीं किया जा सकता है।
देशी रूप में उत्पादित माल के लागू देशी कानून / नियम / आदेश / विनियम / तकनीकी विनिर्देशन / पर्यावरणात्मक / सुरक्षा / स्वास्थ्य मानदंड आयातों पर, जब तक विशिष्ट रूप से छूट प्राप्त न हो, यथोचित परिवर्तनों के साथ लागू होंगे। इस प्रकार किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा लगाये गए किसी उत्पाद विशिष्ट प्रतिबंध का भी आयातक द्वारा पालन किया जाना चाहिए।
आयातित माल पर विभिन्न प्रकार के सीमा-शुल्क तथा उपकर लगाये जाते हैं।
आयातित माल पर मूल सीमा-शुल्क (बीसीडी) सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 की अनुसूची – 1 में निर्धारित दरों पर लगाया जाता है। बीसीडी वस्तुत: आयात को महँगा बनाने के लिए आशयित है ताकि देशी उद्योग को उस सीमा तक संरक्षण प्रदान किया जा सके और राजस्व जुटाया जा सके। बीसीडी यथामूल्य (एडवेलोरम) आधार पर अर्थात् माल के मूल्य के प्रतिशत के रूप में या विशिष्ट आधार पर अर्थात् प्रति यूनिट आधार पर व्यक्त किया जा सकता है।
अतिरिक्त सीमा-शुल्क, जिसे सामान्यत: प्रतिकारी शुल्क (सीवीडी) कहा जाता है, यह सुनिश्चित करने के लिए लगाया जाता है कि आयातित माल पर वही शुल्क लगे जो देशी रूप से उत्पादित माल पर लगता है। इस प्रकार, यह समान माल (यदि भारत में निर्मित होता है) पर लगाये जाने वाले उत्पाद शुल्क के समतुल्य है। यह माल के मूल्य + बीसीडी पर लगाया जाता है। सीवीडी सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 की धारा 3(1) के अंतर्गत लगाया जाता है।
सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 की धारा 3(3) के अंतर्गत लगाया जाने वाला अन्य अतिरिक्त सीमा-शुल्क ऐसी वस्तुओं के उत्पादन या निर्माण में प्रयुक्त किसी कच्चे माल, घटक या उसी स्वरूप के संघटकों पर लगाये जाने वाले उत्पाद शुल्क को प्रति-संतुलित करना चाहता है। यह लेवी उस समय उपयोगी होती है जब देशी रूप से विनिर्मित माल को उत्पाद शुल्क के भुगतान से छूट प्राप्त है। वर्तमान में यह केवल घरेलू उपयोग के लिए स्टेनलेस स्टील वस्तुओं तथा ट्रान्सफॉर्मर ऑयल पर लगाया जाता है। यह माल के निर्धारणीय मूल्य, बीसीडी, सीवीडी, शिक्षा उपकर तथा माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा उपकर के कुल योग पर लगाया जाता है।
एक अन्य अतिरिक्त सीमा-शुल्क, जिसे सामान्यत: विशेष अतिरिक्त शुल्क (एसएडी) बिक्री कर या मूल्य योजित कर की घटना का प्रतिकार करने के लिए लगाया जाता है जो देशी उत्पादकों को भारत में अपना माल बेचने पर अदा करना होता है। वर्तमान में यह 4 प्रतिशत है जो माल के निर्धारणीय मूल्य, बीसीडी, सीवीडी, शिक्षा उपकर तथा माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा उपकर के कुल योग पर लगाया जाता है।
डम्पिंग-रोधी शुल्क देशी उत्पादकों को डम्पिंग अर्थात् सांकेतिक मूल्य से कम मूल्य पर भारत को निर्यात करने वाले विदेशी आपूर्तिकर्ताओं से बचाने के लिए लगाया जाता है। आयात में उछाल से देशी उत्पादकों को अस्थायी रूप से संरक्षित करने के लिए संरक्षण शुल्क लगाया जाता है। अन्य देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त निर्यात से देशी उत्पादकों को संरक्षित करने के लिए डम्पिंग-रोधी प्रतिकारी शुल्क लगाया जाता है। ये शुल्क सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975की धारा क्रमश: 9ए, 8बी तथा 9 के अंतर्गत सरकार द्वारा अधिसूचित दरों पर तथा निर्दिष्ट रूप में लगाये जाते हैं।
आयातित माल पर विभिन्न कानूनों के अंतर्गत कई उपकर जैसे शिक्षा उपकर, स्वच्छ ऊर्जा उपकर आदि लगाये जाते हैं जिन्हें सीमा-शुल्क के रूप में उसी ढंग से वसूल किया जाता है। इसके अलावा, सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 सरकार को आयात शुल्क लगाने या बढ़ाने का अधिकार देता है। इस अधिकार का मुश्किल से प्रयोग किया गया है।
‘राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता शुल्क’ (एनसीसीडी) प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए निधियों का एक तैयार कोष निर्मित करने के उद्देश्य से पान मसाला, तम्बाकू उत्पादों तथा विशिष्ट आधार पर अपरिष्कृत पेट्रोलियम तथा दुपहिया और मोटर वाहनोंपर 1% (निर्धारणीय मूल्य + सीवीडी) की दर से लगाया जाता है।
आयातित माल पर देय शुल्क का निर्धारण करने के लिए पहला कदम है सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 की अनुसूची -1, जिसमें सभी मदों को 21 खंडों तथा 98 अध्यायों में शामिल किया गया है, में माल सही वर्गीकरण प्राप्त करना। हरेक अध्याय में 4 अंकीय स्तर पर कई शीर्षक, 6 अंकीय स्तर पर उप-शीर्षक तथा 8 अंकीय स्तर पर टैरिफ लाइनें दी गई हैं। टैरिफ में मद का पता लगाने के लिए खंड टिप्पणियों, अध्याय टिप्पणियों तथा टैरिफ की व्याख्या के लिए नियमों को देखना होगा।
माल का वर्गीकरण करते समय मुख्य आधार "सांविधिक परिभाषा” और विश्व सीमा-शुल्क संगठन की एचएसएन व्याख्यात्मक टिप्पणियों में दिए गए दिशानिर्देश हैं। “व्यापार अर्थ” को उचित महत्व दिया जाना चाहिए, जब तक स्वयं टैरिफ शब्द का तकनीकी भाव में व्याख्या करने की अपेक्षा न करे, ऐसे मामलों में तकनीकी शब्दकोशों का प्रयोग किया जाना चाहिए। केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा-शुल्क बोर्ड ने वर्गीकरण पर कई स्पष्टीकरण जारी किए हैं और स्पष्टीकरणों पर कई केस कानून भी हैं। संदेह की स्थिति में, अग्रिम निर्णय प्राधिकारी से बाध्यकारी निर्णय प्राप्त किया जा सकता है।
जब वर्गीकरण हो जाता है, उस मद के सामने टैरिफ अनुसूची में निर्दिष्ट शुल्क-दर, जिसे ‘शुल्क की टैरिफ दर’ कहा जाता है, आधार हो जाती है। अगला कदम यह जांचना होता है कि क्या वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किसी छूट अधिसूचना में यह मद शामिल है। छूट अधिसूचना के साथ पठित टैरिफ दर मूल सीमा-शुल्क दर (बीसीडी) का निर्धारण करने के लिए शुल्क की प्रभावी दर सूचित करती है।
समान मदों, यदि भारत में निर्मित के लिए सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 की धारा 3(1) के अंतर्गत मद पर लगने वाले अतिरिक्त सीमा-शुल्क (सीवीडी) का निर्धारण करने के लिए वही प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिए। केन्द्रीय उत्पाद शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1985 को सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 के साथ समनुरूपित किया गया है और इसलिए वर्गीकरण दोनों कानूनों के अंतर्गत एक ही होगा। यहां पुन:, छूट अधिसूचना के साथ पठित टैरिफ दर उत्पाद-शुल्क की प्रभावी दर सूचित करती है। यह शुल्क दर सीवीडी लगाने के लिए अपनायी जानी चाहिए जो समान मदों, यदि भारत में निर्मित या उत्पादित, पर लगने वाले उत्पाद शुल्क के समतुल्य है।
बीसीडी + सीवीडी पर 2% शिक्षा उपकर लगाया जाता है और बीसीडी + सीवीडी पर 1% की दर से माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा उपकर लगाया जाता है। सीमा-शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 की धारा 3(5) के अंतर्गत अतिरिक्त सीमा-शुल्क (सीवीडी), जिसे एसएडी कहा जाता है, 4% है। क्या विचाराधीन मद के लिए ईसी, एसएचई या एसएडी से छूट प्राप्त है। इसकी जांच छूट अधिसूचना से कर लेनी चाहिए।
उसके बाद, डम्पिंग-रोधी, सुरक्षा शुल्क तथा डम्पिंग-रोधी प्रतिकारी शुल्क से संबंधित अधिसूचनाएं यह जांचने के लिए देखी जानी चाहिएं कि क्या आयात की मद पर इनमें से कोई शुल्क लगाया गया है। ये अधिसूचनाएं प्रति यूनिट आधार पर या आयातित माल के मूल्य से आधिक्य राशि पर तथा इसी प्रकार लगाये जाने वाले शुल्क को व्यक्त करते हैं।
अंत में, विभिन्न कानूनों के अंतर्गत उत्पाद विशिष्ट उपकर लगाये जाते हैं। इनमें से कुछ छूट अधिसूचनाओं में शामिल हो सकते हैं।
सीमा-शुल्क विभाग के माध्यम से आयातित माल की मंजूरी के लिए पहला कदम आंतरिक उपभोग या मालगोदाम के लिए आयात-पत्र दाखिल करना है जिसमें माल, मूल्य, मात्रा, छूट अधिसूचना, सीमा-शुल्क टैरिफ शीर्षक आदि के विवरण हों। आयात-पत्र पोत / विमान के प्रत्याशित आगमन से 30 दिन पहले दाखिल किया जा सकता है।
मैनुअल प्रणाली में, आयातक को आयात-पत्र चार प्रतियों में फाइल करना होता है; सीमा-शुल्क विभाग के लिए मूल तथा दूसरी प्रति, आयातक के लिए तीसरी प्रति और विप्रेषण करने के लिए बैंक के लिए चौथी प्रति। आयात-पत्र के साथ निम्नलिखित दस्तावेज भी सामान्यत: आवश्यक होते हैं : (क) कमर्शियल इनवाएस एवं पैकिंग सूची, (ख) लदान-पत्र/ हवाई मार्ग बिल, (ग) संबंधित कानूनों के अंतर्गत अपेक्षित दस्तावेज, (घ) छूट अधिसूचना की किसी शर्त को संतुष्ट करने के लिए अपेक्षित दस्तावेज। ईडीआई सीमा-शुल्क स्टेशनों में आयातक या उसके सीमा-शुल्क ब्रोकर द्वारा एक ऑनलाइन घोषणा फाइल करनी होगी जिसके आधार पर सिस्टम द्वारा आयात-पत्र जनरेट किया जाता है।
सीमा-शुल्क स्टेशनों में आयातक को आयात का विनियमन करने वाली विभिन्न एजेंसियों (ड्रग्स नियंत्रण, पौधा / पशु संगरोध आदि) द्वारा अपेक्षित सभी दस्तावेज इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रस्तुत कर ऑनलाइन अनुमोदन प्राप्त होंगे। आयातक को हरेक विनियामक से अलग-अलग संपर्क करने की आवश्यकता नहीं है।
जोखिम प्रबंधन प्रणाली (आरएमएस) में अपेक्षित अनुसार आयातक या निर्यातक द्वारा फाइल की गई घोषणा का उचित अधिकारी द्वारा सत्यापन किया जाएगा, कुछ मामलों में, सीमा-शुल्क आयुक्त के अनुमोदन से भी सत्यापन किया जा सकता है। ऐसे मामलों में आयात-पत्र या तो निर्धारण की समीक्षा के लिए या आयातित माल की जांच के लिए या दोनों के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि स्व-निर्धारण सही पाया जाता है तो शुल्क का पुनर्मूल्यांकन किया जाए। ऐसे मामलों में जहां कोई निषेध नहीं है, आयातक द्वारा फाइल की गई घोषणा के बिना सत्यापन के आयात-पत्र शुल्क, यदि कोई है, के भुगतान पर निर्धारण या जांच के बिना सीधे मंजूरी के लिए आगे बढ़ाये जाएंगे।
ऐसे मामलों में, जहां आयातक या निर्यातक शुल्क देयता का निर्धारण करने या किसी कारण से स्व–निर्धारण करने में असमर्थ है, सिवाय ऐसे मामलों में जहां धारा 46(1) के परंतुक के अंतर्गत आयातक द्वारा जांच के लिए अनुरोध किया गया है, सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 18(ए) के अंतर्गत उसके मूल्यांकन के लिए उचित अधिकारी के पास अनुरोध किया जाएगा। इस स्थिति में, उचित अधिकारी को आयातक को अनंतिम रूप से निर्धारित शुल्क तथा निर्धारण के बाद अंतिम रूप से देय शुल्क के समतुल्य अंतर शुल्क के लिए प्रतिभूति, जो उपयुक्त समझी जाए, प्रस्तुत करने के लिए कहकर शुल्क के अनंतिम निर्धारण का आश्रय लेने का विकल्प है।
ऐसी स्थितियां हो सकती हैं जब सीमा-शुल्क विभाग के उचित अधिकारी को यह लगता है कि स्व-निर्धारण के सत्यापन के लिए परीक्षण / अतिरिक्त दस्तावेज / सूचना की आवश्यकता है और माल का तुरंत पुनर्मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है, लेकिन आयातक / निर्यातक द्वारा अत्यावश्यक आधार पर उसकी निकासी चाहिए। ऐसे मामलों में भी, माल अंतर शुल्क राशि तथा अनंतिम निर्धारण के लिए बांड पर माल जारी किया जा सकता है।
आयातित माल पर सीमा-शुल्क की दरें या तो विशिष्ट या यथामूल्य आधार पर या कभी – कभी विशिष्ट सह यथामूल्य आधार पर होती हैं। जब सीमा-शुल्क यथामूल्य दरों पर अर्थात् माल के मूल्य के आधार पर लगाया जाता है, सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 14, जो आयात / निर्यात माल के मूल्यांकन के लिए आधार निर्धारित करता है और सीमा-शुल्क मूल्यांकन (आयातित माल के मूल्य का निर्धारण) नियम, 2007 (जिसे सामान्यत: सीमा-शुल्क मूल्यांकन नियम – सीवीआर कहा जाता है) लागू हो जाते हैं। ये विश्व वयापार संगठन में मूल्यांकन संबंधी करार पर आधारित हैं।
सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 14(2) के अंतर्गत, केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा-शुल्क बोर्ड किसी मद के लिए मूल्य निर्धारित करने के लिए अधिकृत हैं। इसे ‘टैरिफ मूल्य’ कहा जाता है। यदि किसी माल के लिए टैरिफ मूल्य निर्धारित किए जाते हैं, उन पर यथामूल्य शुल्क की गणना ऐसे टैरिफ मूल्यों के संदर्भ में की जानी चाहिए। टैरिफ मूल्य वर्तमान में अपरिष्कृत पॉम ऑयल, आरबीडी पॉम ऑयल, अन्य पॉम ऑयल, अपरिष्कृत पामोलीन, आरबीडी पामोलीन, अन्य पामोलीन, अपरिष्कृत सोया तेल, पीतल स्क्रैप (सभी ग्रेड) तथा पॉपी सीड्सके आयात के संबंध में नियत किए गए हैं।
अन्य माल के लिए, आवेदक को प्रदत्त या देय मूल्य, क्या आयात सम्बद्ध पार्टी से है, क्या माल के उपयोग तथा वितरण पर कोई प्रतिबंध मूल्य को विकृत करता है तथा क्या कमीशन, दलाली, कंटेनर या पैकिंग की लागत, क्रेता द्वारा दी गई सहायता, इंजीनियरिंग, डेवलपिंग, आर्ट वर्क, डिजाइन कार्य, भारत से बाहर अन्यत्र बनाये गए प्लैन तथा स्केच की लागता, रॉयल्टी तथा लाइसेंस फीस, पुनर्बिक्री आय का वापसी प्रवाह, अग्रिम भुगतान, मालभाड़ा, बीमा, उतराई प्रभार या कोई अन्य भुगतान आदि, जो आयातित माल से सम्बद्ध है लेकिन मूल्य का हिस्सा नहीं है, के लिए कोई लोडिंग किया गया है, जैसे विवरण देते हुए मूल्य की एक घोषणा (जिसे सामान्यत: गैट घोषणा कहा जाता है) फाइल करनी होगी। सम्बद्ध पार्टी लेन-देनों के मामले में, माल अनंतिम मूल्यांकन पर जारी किया जा सकता है और आयातक को विशेष मूल्यांकन शाखा द्वारा उपयुक्त जांच हेतु अतिरिक्त सूचना प्रस्तुत के लिए करने कहा जाता है। अन्य मामलों में, सीमा-शुल्क विभाग मूल्य घोषणा की जांच कर सकता है और यदि वह स्वीकार्य नहीं है तो घोषणा को नामंजूर कर सकता है और सीवीआर के नियम क्रमश: 4, 5, 7, 8, तथा 9 का प्रयोग करते हुए मूल्य का निर्धारण कर सकता है।
सीवीआर के नियम 4 के अंतर्गत सीमा-शुल्क विभाग समसामयिक आयात के आधार पर अर्थात् लगभग एक ही समय तथा स्थान पर और उसी वाणिज्यिक तथा मात्रा स्तरों पर मूल्य का निर्धारण करता है। यदि उस आधार पर मूल्य का निर्धारण नहीं किया जा सकता है तो सीमा-शुल्क विभाग सीवीआर नियम 5 के अंतर्गत अर्थात् लगभग उसी समय तथा स्थान पर और उसी वाणिज्यिक तथा मात्रा स्तरों पर आयातित एक ही तरह के माल के मूल्य के आधार पर मूल्य निर्धारित करता है, सीमा-शुल्क विभाग नियम 7 का इस्तेमाल कर सकता है और आयात-पूर्व खर्च घटाकर पुनर्बिक्री मूल्य के आधार पर मूल्य निर्धारित कर सकता है। इस पद्धति के असफल होने पर सीमा-शुल्क विभाग नियम 8, संगणित मूल्य का आश्रय लेता है जो माल के बनाने तथा सुपुर्दगी में शामिल लागत तथा खर्च पर आधारित है। अंतिम पद्धति, नियम 9 के अंतर्गत, अवशिष्ट पद्धति या फाल बैक पद्धति है जहां मूल्य का निर्धारण सीमा-शुल्क विभाग के पास उपलब्ध परिमाणनीय आंकड़ों तथा उद्देश्य के आधार पर किया जाता है।
विदेश व्यापार नीति के पैरा 2।31 के अनुसार, पुराने पर्सनल कंप्यूटर / लैपटॉप, फोटो कॉपियर मशीन, डिजिटल बहु-कार्य प्रिंट तथा कॉपिंग मशीन, एयर कंडीशनर तथा डीजल जनरेटर सेट का आयात प्रतिबंधित है। अन्य सभी प्रयुक्त पूंजीगत माल लाइसेंस / प्राधिकरण के बिना आयात किए जा सकते हैं। तथापि निर्यात संवर्धन पूंजीगत माल योजना के अंतर्गत उनके आयात की अनुमति नहीं है।
प्रयुक्त पूंजीगत माल के मूल्यांकन के प्रयोजनार्थ, केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा-शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने कुछ दिशानिर्देश(परिपत्र सं। 25/2015-कस्टम दिनांक 15।10।2015) जारी किए हैं। इस परिपत्र के अनुसार, पुरानी मशीनरी / प्रयुक्त पूंजीगत माल के समस्त आयात के साथ बिक्री के स्थान पर माल के जांच के आधार पर तैयार की गई विदेशी चार्टर्ड इंजीनियर या उसके समतुल्य द्वारा जारी निरीक्षण / मूल्यांकन रिपोर्ट होनी चाहिए। चार्टर्ड इंजीनियर या उसके समतुल्य की रिपोर्ट उस परिपत्र के साथ संलग्न फॉर्म ‘ए’ के अनुसार होनी चाहिए। यदि आयातक माल के निरीक्षण / मूल्यांकन की विदेशी रिपोर्ट प्राप्त करने में असफल रहता है, तो उसे एचबीपी 2015-20 के परिशिष्ट 2-I के अंतर्गत डीजीएफटी द्वारा अधिसूचित रूप में भारत में किसी एजेंसी से माल का निरीक्षण कराना चाहिए। सीमा-शुल्क स्टेशनों पर जहां डीजीएफटी द्वारा अधिसूचित एजेंसियां नहीं है, आयातक स्थानीय रूप से सूचीबद्ध चार्टर्ड इंजीनियरों की सेवाएं प्राप्त करना जारी रख सकते हैं। ऐसे मामलों में जहां रिपोर्ट डीजीएफटी द्वारा भारत में अधिसूचित एजेंसियों या कस्टम हाउसों द्वारा सूचीबद्ध चार्टर्ड इंजीनियरों द्वारा तैयार की जानी है, वह उक्त परिपत्र के साथ संलग्न फॉर्म ‘बी’ में होना चाहिए।
आयातक द्वारा घोषित मूल्य की जांच चार्टर्ड इंजीनियर की रिपोर्ट के संबंध में की जानी चाहिए। इसी प्रकार, परिपत्र सं।493/124/86- कस्टम IV दिनांक 19।11।1987 तथा 4।1।1988 के निबंधनों के अनुसार निर्धारित माल के मूल्यह्रासित मूल्य के संदर्भ में घोषित मूल्य की जांच की जाएगी। यदि ऐसी तुलना माल के घोषित मूल्य के बारे में कोई संदेह उत्पन्न नहीं करती है तो घोषित मूल्य स्वीकार कर लिया जाए। यदि नहीं तो उपयुक्त अधिकारी घोषित मूल्य को उचित सिद्ध करते हुए आयातक से स्पष्टीकरण मांगेगा, आयातक द्वारा प्रयुक्त साक्ष्यों का मूल्यांकन करेगा और मूल्यह्रास, री-फर्बिशमेंट या रीकंडीशनिंग (यदि कोई है) जैसे कारकों तथा माल की दशा पर सम्यक् विचार करने के बाद यह निर्धारित करेगा कि क्या सीमा-शुल्क मूल्यांकन नियम, 2007 के नियम 4 से 9 के निबंधनों के अनुसार माल के मूल्य का निर्धारण करने के लिए घोषित ट्रांजैक्शन मूल्य या आय को स्वीकार किया जाए।
सीबीईसी परिपत्र सं।493/124/86-कस्टम IV दिनांक 19।11।1987 में 70% की समग्र सीमा के अधीन मूल्यह्रास का निम्नलिखित मान निर्धारित किया गया है:
क्रं।सं। | अवधि | मूल्यह्रास दर |
---|---|---|
(i) | (i) पहले वर्ष के दौरान प्रत्येक तिमाही के लिए | 4% |
(ii) | (ii) दूसरे वर्ष के दौरान प्रत्येक तिमाही के लिए | 3% |
(iii) | तीसरे वर्ष के दौरान प्रत्येक तिमाही के लिए | 2.5% |
(iv) | चौथे वर्ष के दौरान प्रत्येक तिमाही के लिए | 2% |
मूल्यह्रास नई मशीनरी की मूल क्रय कीमत या कारों के लिए विश्व कार कैटलॉग कीमत पर सीधी रेखा पद्धति पर लगाया जाना चाहिए। री-कंडीशनिंग, यदि कोई है, की लागत जोड़ी जानी चाहिए। तिमाही के भाग के लिए उपयोग पर पूर्ण मूल्यह्रास की अनुमति है।
निर्यातित माल के पुन: आयात विदेश व्यापार (कतिपय मामलों में नियमों की प्रयोज्यता से छूट) नियम, 1993 के बचत खंड के अंतर्गत शामित है और इस प्रकार लाइसेंस / प्राधिकरण के बिना अनुमत है।
सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 22 के अनुसार, “यदि माल भारत से निर्यात के बाद भारत में आयात किया जाता है, ऐसा माल शुल्क के लिए दायी होगा और उन सभी शर्तों तथा प्रतिबंधों, यदि कोई हों, के अधीन होगा जिसके लिए समान प्रकार तथा मूल्य के माल उसके आयात पर दायी या अधीन हैं।” इसका अर्थ यह है कि ऐसे माल पर पूरा शुल्क लगेगा। तथापि, पुन: आयात को शामिल करते हुए कुछ छूट अधिसूचनाएं हैं। पुन: आयात के सभी मामलों में, सीमा-शुल्क विभाग अभिन्न्ता के बारे में संतुष्ट हो कि वे वही हैं जो निर्यात किए गए थे।
दिनांक 14।11।1995की अधिसूचना 158/95 मरम्मत, रीकंडीशनिंग, पुन: प्रसंस्करण, परिष्करण, पुनर्निर्माण, इसी प्रकार की कोई अन्य प्रक्रिया करने तथा पुन: आयात की तारीख से 6 महीने, जो सीमा-शुल्क आयुक्त की अनुमति से छ: महीने की अवधि के लिए और बढ़ायी जा सकती है, की अवधि के भीतर पुन: निर्यात के प्रयोजनार्थ निर्यातित माल के पुन: आयात पर विचार करती है। इस प्रयोजन के लिए, पुन: आयात के समय सीमा-शुल्क विभाग को एक बांड प्रस्तुत करना होगा जिसे उक्त किसी भी प्रक्रिया को पूरा करने के बाद पुन: निर्यात पर उन्मोचित किया जाएगा। मरम्मत तथा रीकंडीशनिंग के लिए, पुन: आयात निर्यात के तीन वर्ष के भीतर होना चाहिए। पुन: प्रसंस्करण, परिष्करण, पुनर्निर्माण, इसी प्रकार की अन्य प्रक्रिया पूरा करनेके लिए पुन: आयात निर्यात के एक वर्ष के भीतर हो जाना चाहिए। इसके अलावा, ये प्रक्रियाएं केन्द्रीय उत्पाद शुल्क नियम, 1944 के नियम 173 एमएम के अंतर्गत तथा सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 65 के प्रावधानों के अंतर्गत सीमा-शुल्क बांड में निर्धारित प्रक्रियाओं का अनुसरण करते हुए केन्द्रीय उत्पाद शुल्क नियंत्रण के अंतर्गत किसी फैक्टरी में निष्पादित की जानी चाहिए।
दिनांक 16।12।1995 की अधिसूचना 94/96-कस्टम का सार यह है कि निर्यात के समय उठाया गया कोई भी लाभ अभ्यर्पित किया जाना चाहिए। इस प्रकार, यदि निर्यात के समय शुल्क वापसी या उत्पाद शुल्क (राज्य या केन्द्र) छूट का लाभ उठाया गया था तो उसे वापस किया जाना चाहिए। यदि निर्यात के समय कोई उत्पाद शुल्क अदा नहीं किया गया था तो उसे पुन: आयात के समय अदा किया जाना चाहिए। यदि माल अग्रिम प्राधिकरण या ईपीसीजी प्राधिकरण के विरुद्ध दायित्व के उन्मोचन में निर्यात किए गए थे तो प्रविष्टि को डी-लॉग किया जाना चाहिए और डीईईसी लदान-पत्र को मुक्त लदान-पत्र में परिवर्तित किया जाना चाहिए और इसी प्रकार।
अधिसूचना 94/96 के अंतर्गत , यदि माल मरम्मत या पुन: आयात के लिए विदेश नहीं भेजा जाता है, पुन: आयात पर देय शुल्क मरम्मत की लागत (चाहे उपगत हो या न हो) + आने-जाने के माल-भाड़े तथा बीमा लागत पर शुल्क लगेगा। अधिसूचना 94/96 किसी निर्यात प्रोत्साहन का लाभ उठाये बिना निर्यात किए गए अन्य माल को पूर्णत: छूट प्रदान करती है। इस अधिसूचना में कुछ शर्तें हैं जिन्हें ध्यानपूर्वक नोट किया जाना चाहिए।
उपर्युक्त के अलावा, इलेक्ट्रोप्लेटिंग, परियोजनाओं के निष्पादन आदि तथा कुछ विविध प्रयोजनों के लिए विदेश भेजे गए माल के पुन: आयात को शामिल करते हुए छूट अधिसूचनाएं भी हैं।
तीन प्रकार के बंधित मालगोदाम होते हैं जहां आयातित माल किसी शुल्क के भुगतान के बिना रखे जा सकते हैं। ये हैं –
लाइसेंसिंग शर्तें शोधक्षमता प्रमाणपत्र, पर्यवेक्षण प्रभार, कस्टम लॉक आदि के बारे में अलग-अलग शर्तों के सिवाय कमोबेश समान हैं। आयातकों को बंधित मालगोदाम में माल जमा करने से पूर्व शुल्क की तिगुनी राशि के लिए बांड देना होगा। माल बंधित मालगोदाम में एक वर्ष की अवधि के लिए रखे जा सकते हैं। इस अवधि को सीमा-शुल्क आयुक्त द्वारा एक वर्ष की अतिरिक्त अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है। आंतरिक उपभोग के लिए निकालते समय शुल्क अदा करना होगा। नब्बे दिन की ब्याज-मुक्त अवधि के बाद अधिसूचित दरों पर ब्याज देय होगा।
संवदेशील माल में सोना, चांदी, अन्य बहुमूल्य धातुएं तथा अर्द्ध-बहुमूल्य धातुएं तथा उनसे निर्मित वस्तुएं; सीमा-शुल्क क्षेत्र में शुल्क मुक्त दुकानों को आपूर्ति, पोत या विमान को भंडार के रूप में आपूर्ति तथा विदेशी विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति को आपूर्ति के प्रयोजनार्थ मालगोदाम में रखे गए माल शामिल हैं। विशेष मालगोदाम सीमा-शुल्क विभाग के भौतिक नियंत्रण में होंगे। मालगोदाम के प्रभारी बांड अधिकारियों की अनुमति तथा उनकी अनुपस्थिति के सिवाय संवदेनशील माल को विशेष मालगोदाम में लाने या वहां से निकालने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
अन्य मालगोदामों के मामले में, आयातित माल के प्रवेश के लिए अनुमति आवश्यक नहीं है और निर्यात माल निकालते समय को छोड़कर सीमा-शुल्क अधिकारी की उपस्थिति आवश्यक नहीं है। पोर्ट से मालगोदाम या एक मालगोदाम से दूसरे मालगोदाम में या निर्यात के लिए मालगोदाम से माल की आवा-जाही बोतल मुहरबंद या संख्यांकित एक-बारीय लॉक के अंतर्गत होनी चाहिए। विनिर्मित वस्तु बंधित मालगोदाम में लायी जा सकती है।
सभी मामलों में, माल के भंडारण तथा संचालन के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए। माल की प्राप्ति, भंडारण, परिचालन तथा निकासी का हिसाब रखने के लिए कंप्यूटरीकृत प्रणाली होनी चाहिए और पर्याप्त कार्मिक नियुक्त होने चाहिए। माल गोदामपाल को सभी दस्तावेज इलेक्ट्रॉनिक रूप में फाइल करने के लिए डिजिटल हस्ताक्षर का प्रयोग करना चाहिए। उचित रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए और आवधिक विवरणियां प्रस्तुत की जानी चाहिएं।
केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा-शुल्क बोर्ड ने यह स्पष्ट किया है कि सीमा-शुल्क क्षेत्र में स्थित शुल्क-मुक्त दुकान (डीएफएस) को मालगोदाम नहीं माना जाना चाहिए। यह ऐसे माल के लिए एक बिक्री बिन्दु है जो भारत में आने वाले या भारत से प्रस्थान करने वाले अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को बिक्री के लिए सीमा-शुल्क क्षेत्र में लाए जाने के लिए मालगोदाम से निकाले जाते हैं। डीएफएस ऑपरेटर, जो शुल्क–मुक्त शॉपिंग क्षेत्र में स्टॉक की प्रतिपूर्ति करने के लिए स्टेजिंग क्षेत्र के रूप में कार्य करने के लिए शहरों में बड़े मालगोदामों में तथा/या हवाई-अड्डों के अहातों में तथा के आस-पास छोटे मालगोदामों में माल भंडारित करते हैं, उन मालगोदामों के लिए बंधित मालगोदाम के रूप में लाइसेंस प्राप्त कर सकते हैं।
स्व-निर्धारण की शुरुआत हो जाने से, अधिकांश आयातित पारेषण आयातक की घोषणा के आधार पर निकल जाते हैं। जब जोखिम प्रबंधन प्रणाली कस्टम्स द्वारा मूल्य-निर्धारण के लिए कोई लदान-पत्र सिलेक्ट करती है या जब अपने स्वयं की जानकारी के आधार पर सीमा-शुल्क विभाग किसी लदान-पत्र की जांच करने का निर्णय लेता है, तब भी माल क्लियर हो जाते हैं, जब तक कि कानूनी प्रावधानों का अपालन ध्यान में नहीं आता है।
ऐसे अवसर भी होते हैं जब माल मुख्यत: वर्गीकरण या मूल्यांकन विवादों के कारण रोक दिए जाते हैं। ऐसे मामलों में, यह बेहतर होगा कि अंतर शुल्क राशि के लिए बांड प्रस्तुत किया जाए, अनंतिम मूल्यांकन के अंतर्गत माल निकाला जाए और बाद में तर्क-वितर्क किए जाएं। ऐसे भी अवसर होते हैं जब सीमा-शुल्क विभाग परीक्षण / जांच के लिए नमूने भेजना चाहता है। ऐसे मामलों में भी, बांड प्रस्तुत किया जा सकता है और अनंतिम मूल्यांकन पर माल निकलवाया जा सकता है।
जब रोक इस आधार पर है कि माल का आयात प्रतिबंधित है या कुछ शर्तों को पूरा करने के अधीन है और आयातक शर्तों (जैसे परमिट या लाइसेंस प्राप्त करना) को शीघ्र पूरा करने की प्रक्रिया में है, वह सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 49 के अंतर्गत सार्वजनिक बंधित मालगोदाम में माल जमा करने की अनुमति प्राप्त कर सकता है। यदि आयातक शुल्क छूट का दावा करना चाहता है जो कुछ शर्तों (अर्थात् प्रमाणपत्र या प्राधिकरण प्राप्त करना) की पूर्ति के अधीन मंजूर की जा सकती है और वह मालगोदाम में रखने के लिए आयात-पत्र दाखिल कर सकता है, बंधित मालगोदाम में माल जमा कर सकता है और छूट की मंजूरी हेतु अपेक्षाओं का पालन करने की स्थिति में होने पर वह माल निकलवा सकता है।
ऐसी स्थितियां हो सकती हैं जहां आयातक इस बात से व्यथित है कि माल गलत ढंग से रोका गया है। ऐसे मामलों में, उसे वरिष्ठ अधिकारियों से मिलना चाहिए। मुख्य सीमा-शुल्क आयुक्त / सीमा-शुल्क आयुक्त से सभी कार्यदिवसों में निर्दिष्ट समय के दौरान कोई भी शिकायत रखने वाला व्यक्ति पहले से समय लिये बिना उससे मुलाकात करने के लिए स्वतंत्र है। इसके अलावा, हरेक आयुक्तालय में एक पदनामित लोक शिकायत अधिकारी होता है। इन अधिकारियों के नाम तथा फोन नंबर सार्वजनिक रूप में उपलब्ध रहते हैं। शिकायत के निवारण के लिए उन्हें संपर्क किया जा सकता है।
मुख्य / प्रधान सीमा-शुल्क आयुक्त, व्यापार तथा उद्योग और कस्टम हाउस एजेंटों के प्रतिनिधियों, अभिरक्षकों, बैंकों, निर्यात संवर्धन एजेंसियों तथा वाणिज्य मंडलों के प्रतिनिधियों , भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण / पोर्ट स्वास्थ्य अधिकारी, पौध / पशु संगरोध प्राधिकारी, भारतीय औषध नियंत्रक, टेक्सटाइल समिति के सदस्यों आदि से युक्त कई समितियां जैसे लोक शिकायत समिति, निगरानी समिति और स्थल सीमा-शुल्क स्टेशनों तथा अंतर्देशीय कंटेनर डिपो के लिए सीमा-शुल्क मंजूरी सुगमीकरण समिति (सीसीएफसी) कई सीमा-शुल्क आयुक्तालयों में गठित की गई हैं। ये समितियां प्रक्रियात्मक मुद्दों या निर्यात / आयात के कस्टम क्लियरेंस में आने वाली समस्याओं या विभिन्न प्रोत्साहनों की मंजूरी में आने वाली समस्याओं को देखने के लिए नियमित रूप से बैठकें करती हैं। व्यापार तथा उद्योग से प्राप्त फीडबैक का इस्तेमाल प्रक्रियाओं की आवश्यक समीक्षा तथा आयातकों / निर्यातकों की कठिनाइयों को दूर करने हेतु उपाय करने के लिए किया जाता है तथा बैठकों के कार्यवृत्त वेबसाईट पर रखे जाते हैं। आयातक को अपनी समस्याओं को प्रस्तुत करने के लिए इन मंचों का इस्तेमाल करना चाहिए। कभी – कभी आयातक न्यायालय के दरवाजे भी खटखटाते हैं और उपयुक्त राहत की मांग करते हैं।
वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात तथा आयात मदों के वर्गीकरण के लिए भारतीय व्यापार वर्गीकरण (एच एस प्रणाली) अधिसूचित किया है, जिसे आईटीसी (एचएस) के नाम से जाना जाता है। आईटीसी (एचएस) की अनुसूची– 2 में निर्यात नीति दी गयी है। इसमें 2 तालिकाएं हैं – तालिका ‘ए’ तथा तालिका ‘बी’। तालिका ‘ए’ ऐसी मदों के लिए नीति प्रस्तुत करती है जो आईटीसी (एचएस) की अनुसूची -1 के कई अध्यायों या शीर्षकों या उप शीर्षकों के अंतर्गत आ सकती हैं। तालिका ‘बी’ आईटीसी (एचएस) की अनुसूची–1 के विशिष्ट अध्याय या शीर्षकों या उप शीर्षकों पर नीति प्रस्तुत करती है। तालिका ‘ए’ तथा ‘बी’ में सूचीबद्ध माल से भिन्न सभी माल मुक्त रूप से यानि किसी शर्त के बिना निर्यात किए जा सकते हैं। अनुसूची – 2 तथा इसके परिशिष्ट में निर्यात लाइसेंसिंग नीति विदेश व्यापार (विकास एवं विनियम) अधिनियम, 1992 के अंतर्गत सार्वजनिक सूचना या अधिसूचना के जरिए नियंत्रण को निवारित नहीं करता है।
तालिका ‘ए’ में 8 प्रविष्टियां हैं। इनमें आईटीसी (एचएस) की अनुसूची 2 के परिशिष्ट 3 में यथा निर्दिष्ट विशेष रसायन, ऑर्गेनिज्म, सामग्री, उपकरण एवं प्रौद्योगिकी (एससीआइएमईटी) माल; विदेश व्यापार महा निदेशक द्वारा निर्दिष्ट मिलिटरी स्टोर्स तथा जंगली जानवर, पशु उत्पाद तथा डेरिवेटिव सहित उनसे निर्मित वस्तुएं महत्वपूर्ण हैं।एससीओएमईटी सूची में न शामिल मदों का निर्यात भी भारी विनाश के हथियार और उनकी वितरण प्रणाली (अधिमान्य कार्यकलापों का निषेध) अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के अंतर्गत विनियमित होगा। पेलिट, डनिज, क्रेटिंग, पैकिंग ब्लॉक, ड्रम, केस लोड बोर्ड, पेलिट कॉलर्स तथा स्किड्स आदि जैसे वुड पैकेजिंग सामग्री का प्रयोग करते हुए पौधा तथा पौध उत्पादों सहित माल के निर्यात की अनुमति पादपस्वच्छता उपायों हेतु अंतरराष्ट्रीय मानदंड सं. 15 (आईएसपीएम 15) के अनुपालन के अधीन दी जाएगी।
तालिका ‘बी’ आईटीसी (एचएस) की अनुसूची – 1 के कतिपय अध्यायों, शीर्षकों / उप – शीर्षकों के अंतर्गत शामिल मदों को सूचीबद्ध करती है। नीति हरेक प्रविष्टि के सामने उल्लिखित है। कुछ मदें ‘निषिद्ध’ हैं अर्थात् उन्हें निर्यात करने की अनुमति नहीं है। कुछ मदें ‘प्रतिबंधित’ हैं अर्थात उनके निर्यात की अनुमति लाइसेंस के अंतर्गत दी जा सकती है। कुछ मदें सिर्फ राज्य व्यापार उद्यमों (अर्थात् स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन लि।) द्वारा ही निर्यात की जा सकती हैं। तालिका ‘बी’ की अन्य सभी मदों का मुक्त रूप से निर्यात करने की अनुमति है, लेकिन यह निर्दिष्ट शर्तों जैसे निर्दिष्ट प्राधिकारियों से प्रमाणपत्र, कुछ प्राधिकारियों के पास रजिसट्रेशन, न्यूनतम निर्यात मूल्य, निर्दिष्ट कानूनों का पालन, गुणवत्ता प्रमाणन तथा इसी प्रकार अन्य शर्तों की पूर्ति के अधीन होगी।
सामान्यत: निर्यात के लिए कोई देश विशिष्ट प्रतिबंध नहीं होता है। तथापि, ईराक को शस्त्र तथा संबंधित सामग्री का निर्यात निषिद्ध है। ऐसी सभी मदों, सामग्री, उपकरणों, माल तथा प्रौद्योगिकी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निर्यात निषिद्ध है जो कोरिया प्रजातांत्रिक जन गणराज्य के न्यूक्लियर सम्बद, बैलिस्टिक मिसाइल सम्बद्ध या व्यापक विध्वन्स के अन्य हथियारों के निर्माण में योगदान दे सकें। कोत-दि-वॉयर को अपरिष्कृत हीरे का निर्यात निषिद्ध है। अपरिष्कृत हीरे का निर्यात निषिद्ध है।
इसके अलावा, विदेश व्यापार महा निदेशक द्वारा जारी सार्वजनिक सूचना से विनियमित किसी मद का सार्वजनिक सूचना में अधिसूचित शर्तों के अधीन मुक्त रूप से निर्यात किया जा सकता है।
निर्यात माल की निकासी (क्लियरेंस) के लिए निर्यातक या उसके एजेंट को लदान-पत्र दाखिल करने से पूर्व डीजीएफटी से एक आयातक – निर्यातक कोड (आईईसी) नंबर प्राप्त करना होगा। ईडीआई प्रणाली के अंतर्गत, आईईसी नंबर डीजीएफटी से सीमाशुल्क सिस्टम द्वारा ऑनलाइन प्राप्त होता है। निर्यातक को प्राधिकृत विदेशी मुद्राव्यापारी कोड (जिसके माध्यम से निर्यात आय प्राप्त होने की प्रत्याशा है) भी पंजीकृत कराना होगा तथा कोई शुल्क वापसी प्रोत्साहन राशि जमा करने के लिए नामित बैंक में एक चालू खाता खोलना होगा।
निर्यात संवर्धन योजना के अंतर्गत निर्यात करने के इच्छुक सभी निर्यातकों को सीमा-शुल्क स्टेशन में अपने लाइसेंस आदि का रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। ऐसे रजिस्ट्रेशन के लिए मूल दस्तावेज आवश्यक होते हैं। सामान्यत: लदान-पत्र की प्रोसेसिंग के लिए ईडीएफ / एसडीएफ फॉर्म प्रस्तुत करना आवश्यक है जिसका इस्तेमाल निर्यात आय के संबंध में विदेशी मुद्रा प्रेषण की निगरानी करने के लिए किया जाता है। तथापि, कुछ ऐसे अपवाद हैं जब ईडीएफ फॉर्म आवश्यक नहीं होता है। इन अपवादों में 25,000 यूएस डॉलर से अनधिक मूल्य के माल का निर्यात तथा 5 लाख रुपये तक मूल्य के उपहार का निर्यात शामिल है।
निर्यातकों या उनके सीमा-शुल्क ब्रोकरों को अनिवार्य घोषणा-पत्र तथा दस्तावेजों के साथ निर्यात किए जाने वाले माल के ब्यौरे देते हुए लदान-पत्र फाइल करना होगा। ईडीआई समर्थित सीमा-शुल्क स्टेशनों में कार्गो घोषणा-पत्र ऑनलाइन अपलोड किया जाता है और लदान-पत्र सिस्टम से जनरेट होता है। आयातक तथा निर्यातक सिर्फ सीमा-शुल्क विभाग के पास एकल बिन्दु पर अपने सीमा-शुल्क मंजूरी दस्तावेज इलेकट्रॉनिक रूप में प्रस्तुत करते हैं। साझेदार सरकारी एजेंसियों (पीजीए) जैसे पशु संगरोध, पौधा संगरोध, औषध नियंत्रक, भारतीय खाद्य सुरक्षा तथा मानक प्राधिकरण, टेक्सटाइल समिति आदि से अपेक्षित अनुमति, यदि कोई है, निर्यातक द्वारा इन एजेंसियों से अलग से संपर्क किए बिना ऑनलाइन प्राप्त होती है। यह सभी विनियामक एजेंसियों, लॉजिस्टिक्स सेवा प्रदाताओं तथा निर्यातकों द्वारा प्रयुक्त एक सामान्य, निर्बाध रूप से एकीकृत आईटी सिस्टम के माध्यम से संभव हो पाया है।
निर्यात के प्रयोजनार्थ लाये गए माल को निर्यातकों द्वारा दाखिल किए गए घोषणा-पत्रों के आधार पर गोदी में प्रवेश की अनुमति दी जाती है। फैक्टरी में भरे गए कंटेनरों को पोर्ट में सीधे प्रवेश की अनुमति देने के लिए भी अनुदेश जारी किए गए हैं। अभिरक्षक संबंधित दस्तावेज पर वस्तुत: प्राप्त माल की मात्रा दर्ज करता है। अगला कदम माल की जांच है। स्व-मूल्यांकन की शुरुआत हो जाने से जोखिम प्रबंधन प्रणाली सीमा-शुल्क द्वारा मूल्यांकन के लिए लदान-पत्र का चयन करती है। सीबीईसी ने प्रोत्साहन की मात्रा, निर्यात माल का मूल्य, गंतव्य स्थान का देश आदि को ध्यान में रखते हुए निर्यात पारेषण की जांच के लिए मानदंड निर्धारित किए हैं।
जांच के बार, सीमा-शुल्क विभाग ‘लेट एक्सपोर्ट ऑर्डर’ देता है। लेट एक्सपोर्ट ऑर्डर(एलईओ) की मंजूरी के बाद कार्गो का पैलिटाइजेशन किया जाता है। इस प्रकार, सीमा-शुल्क से पैलिटाइजेशन के लिए अलग से अनुमति प्राप्त करने की आवश्कता नहीं है। तथापि, विमान / पोत पर लदाई के लिए अनुमति प्राप्त की जाती रहेगी।
मूल्यांकनकर्ता द्वारा ईडीआई सिस्टम पर ‘लेट एक्सपोर्ट ऑर्डर’ दिए जाने के बाद लदान-पत्र दो प्रतियों में जनरेट किया जाता है। तथापि लदान-पत्रकी ईपी प्रति निर्यात सामान्य मालसूची के प्रस्तुतीकरण के बाद ही जनरेट होती है।
मूल्यांकनकर्ता एसडीएफ की मूल तथा दूसरी प्रति पर मुहर के साथ हस्ताक्षर करता है और उसके बाद मूल घोषणा-पत्रों के साथ लदान-पत्र की सीमा-शुल्क प्रति तथा एसडीएफ की मूल प्रति निर्यात विभाग को अग्रेषित करता है। एसडीएफ की निर्यातक प्रति तथा दूसरी प्रति निर्यातक या उसके एजेंट को वापस की जाती है।
सीमा शुल्क निर्धारण (निर्यात माल का मूल्य निर्धारण) नियम, 2007 के नियम 3, 4, 5 और 6 में निर्यात माल के मूल्य निर्धारण के चार तरीके बताए गए हैं।
नियम 3, जो नियम 8 के अध्यधीन है, में कहा गया है कि निर्यात माल का मूल्य वही होगा, जो ट्रांजैक्शन मूल्य होगा। ट्रांजैक्शन मूल्य वह मूल्य है जो भारत से निर्यात के लिए बेचे जाते समय देय है। और निर्यात स्थल पर, जहां माल के खरीदार और विक्रेता संबंधित नहीं हैं और बिक्री के लिए केवल मूल्य का ही ध्यान रखा जाता है। इस प्रकार निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के मूल्य निर्धारण के लिए ट्रांजैक्शन मूल्य ही प्राथमिक आधार है। जहां ट्रांजैक्शन मूल्य स्वीकार नहीं किया जाता, वहां निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का मूल्य निर्धारण नियम 4 से नियम 6 के अनुरूप किया जाएगा।
नियम 3 कहता है कि निर्यात माल का ट्रांजैक्शन मूल्य तब भी स्वीकार्य है, जब खरीदार और विक्रेता संबंधित हों, बशर्ते कि यह संबंध माल के मूल्य को प्रभावित करने वाला न हो। जहां कहीं यह संबंध मूल्य को प्रभावित करने वाला पाया जाता है, वहां निर्यात माल का मूल्य, नियम 4 से 6 में बताए अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए। ‘संबंधी’ कहलाए जाने वाले व्यक्तियों का विवरण मूल्य निर्धारण नियमों के नियम 2 (2) में दिया गया है।
नियम 4 में निर्यात मूल्य का निर्धारण तुलना द्वारा किया जाना बताया गया है। इसके अनुसार, निर्यात माल का मूल्य एक ही तरह के और गुणवत्ता वाले माल के ट्रांजैक्शन मूल्य पर आधारित होगा अथवा आयात करने वाले उसी देश में किन्हीं अन्य खरीदारों अथवा उनकी अनुपस्थिति में नियत राशि में ही आयात करने वाले किसी अन्य देश में माल के ट्रांजैक्शन मूल्य पर आधारित होगा।
नियम 5 गणना मूल्य पद्धति बताता है। यानी इसमें मूल्य का निर्धारण गणना पर आधारित होता है, जिसमें उत्पादन, विनिर्माण अथवा निर्यात माल के प्रसंस्करण की लागत, और डिजाइन या ब्रांड के लिए खर्च, यदि कोई प्रभार है तो वह प्रभार और लाभ की राशि शामिल होती है।
नियम 6 वह पद्धति है, जिसमें मूल्य निर्धारण उचित साधनों का इस्तेमाल करते हुए सिद्धांतों के अनुरूप और नियमों के सामान्य प्रावधानों के अनुसार किया जाता है, बशर्ते कि निर्यात माल का मूल्य निर्धारण केवल निर्यात माल के स्थानीय बाजार मूल्य के आधार पर ही न किया जाए।
नियम 7 के अनुसार निर्यातक द्वारा निर्यात मूल्य के संबंध में एक घोषणा दी जानी जरूरी है।
नियम 8 के अंतर्गत सक्षम अधिकारी को यह अधिकार है कि वह घोषित मूल्य की सत्यता के संबंध में होने पर निर्यातक से इसके संबंध में उचित दस्तावेज अथवा अन्य कोई प्रमाण जैसी दूसरी जानकारी प्रस्तुत करने को कह सकता है। और इस प्रकार की जानकारी मिलने के बाद या ऐसे निर्यातक द्वारा कोई उत्तर न मिलने पर भी सक्षम अधिकारी घोषित को मूल्य की सत्यता के संबंध में संदेह है, तो वह घोषित मूल्य को खारिज कर सकता है और फिर नियम 4 से 6 तक बताए अनुसार मूल्य निर्धारण कर सकता है। इस नियम की ‘व्याख्या’ प्राधिकारी को घोषित मूल्य को खारिज करने के लिए स्पष्टता प्रदान करती है।
सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 74 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि आयातक द्वारा आयातित माल को पुनर्निर्यात किया जाता है, जो कुछ निश्चित शर्तों के अध्यधीन है, तो आयात के समय लिए जाने वाले सीमा शुल्क की 98% तक की राशि वापस प्राप्त की जा सकती है। पुनः निर्यात, आयात किए जाने की तारीख से अधिकतम दो वर्ष की अवधि के भीतर किया जा सकता है (यह समुचित कारण देने पर बढ़ाई जा सकती है)। माल की पहचान पूर्व के आयात दस्तावेजों के आधार पर की जानी आवश्यक है और शुल्क का भुगतान निर्यात के समय सीमा शुल्क सहायक/उपायुक्त की संतुष्टि के अध्यधीन है। इसकी प्रक्रिया आयातित माल का पुनर्निर्यात (सीमा शुल्क की वापसी) नियम, 1995 में दी गई है।
यदि ऐसे माल को आयात के बाद इस्तेमाल किया गया है तो, सीमा शुल्क की वापसी निम्नलिखित अनुपात में की जाएगीः
क्र. | अवधि घरेलू खपत के लिए क्लीयरेंस की तारीख से माल के निर्यात के लिए कस्टम्स कंट्रोल तक पहुंचने की तारीख के बीच की अवधि होगी | ड्राबैक के रूप में दिए जाने वाले आयात शुल्क का प्रतिशत |
---|---|---|
(1) | (2) | (3) |
1 | अधिकतम 3 महीने | 95% |
2 | 3 से 6 महीने | 85% |
3 | 6 से 9 महीने | 75% |
4 | 4. 9 से 12 महीने | 70% |
5 | 12 से 15 महीने | 65% |
6 | 15 से 18 महीने | 60% |
7 | 18 माह से अधिक | कुछ नहीं |
इसके अतिरिक्त, वस्तुओं की कुछ विशिष्ट श्रेणियों पर दिए गए आयात शुल्क पर किसी तरह की शुल्क वापसी की अनुमति नहीं है। जैसे- परिधान, चाय के बक्से, सेंसर बोर्ड से पारित एक्सपोज्ड सिनेमैटोग्राफिक फिल्में, अनएक्सपोज्ड फोटोग्राफिक फिल्में, पेपर और प्लेट्स और एक्स रे फिल्में। व्यक्तिगत या निजी इस्तेमाल के लिए आयात किए गए मोटर वाहनों के संबंध में शुल्क वापसी की गणना, प्रत्येक तिमाही या उस तिमाही के दौरान किए गए इस्तेमाल के प्रतिशत को घटाकर की जाती है। यह अवधि अधिकतम चार वर्ष हो सकती है।
यदि आयातित माल में कोई डिफेक्ट मिलता है या आयातक और माल के आपूर्तिकर्ता के बीच स्पेसिफिकेशन पर सहमत अनुसार माल में कोई अन्य गड़बड़ पाई जाती है तो सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 26ए में आयात शुल्क के रिफंड का प्रावधान है। रिफंड को क्लेम करने की प्रमुख शर्तों में से एक यह भी है कि आयात के बाद माल पर कोई वर्क न किया गया हो या कोई मरम्मत न की गई हो या इस्तेमाल न किया गया हो। बशर्ते कि यह कार्य डिफेक्ट खोजने या स्पेसिफिकेशन पता लगाने के लिए न किया गया हो, तो रिफंड क्लेम किया जा सकता है। दूसरी शर्त यह है कि माल का निर्यात शुल्क वापसी का क्लेम किए बिना किया गया हो अथवा कस्टम्स में छोड़ दिया गया हो अथवा नष्ट कर दिया गया हो अथवा आयातित माल के घरेलू खपत के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा क्लीयरेंस दिए जाने के 30 दिन के भीतर सक्षम प्राधिकारी की उपस्थिति में उस क्लेम को वाणिज्यिक रूप से मूल्यहीन करार दिया गया हो। 30 दिन की यह अवधि सीमा शुल्क आयुक्त के न्यायाधिकार में है, जो वाजिब कारण दिए जाने पर इसे बढ़ा सकते हैं। हालांकि खराब होने वाली वस्तुओं और उपयोग या भंडारण की अवधि खत्म हो जाने वाली वस्तुओं पर कोई रिफंड नहीं मिलेगा।
निर्यात वेयरहाउस ऐसे स्थान होते हैं, जहां निर्यात किए जाने वाले माल को उत्पाद शुल्क चुकाए बिना विनिर्माता से खरीदा जा सकता है और यदि जरूरी हो तो पैकिंग, री-पैकिंग, लेबलिंग या री-लेबलिंग के बाद वेयरहाउस से निर्यात किया जा सकता है। इसकी संकल्पना इसलिए की गई थी ताकि विभिन्न विनिर्माताओं से निर्यात माल की खरीद को सुगम बनाया जा सके और विदेशी ग्राहकों की अपेक्षा के अनुरूप माल निर्यात किया जा सके।
टू स्टार एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा प्राप्त निर्यातक, प्रतिष्ठित विदेशी डिपार्टमेंटल स्टोर और डीजीएफटी के साथ सहमति ज्ञापन करने वाले ऑटोमोबाइल विनिर्माता अहमदाबाद, बेंगलूरु, कोलकाता, चेन्नै, दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर, कानपुर, लुधियाना, पुणे और मुंबई में निर्यात वेयरहाउस स्थापित कर सकते हैं।
जो निर्यातक इस सुविधा का लाभ उठाना चाहते हैं, उन्हें अपने वेयरहाउस को केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड में रजिस्टर कराना आवश्यक है। इसके साथ ही बोर्ड के अधिकारियों द्वारा निर्धारित किसी प्रतिभूति के साथ जनरल बॉन्ड प्रस्तुत करना भी जरूरी है। निर्यातक का एक बॉन्ड खाता होना चाहिए, जिसे किसी भी विनिर्माता की फैक्टरी से माल हटाए जाने पर डेबिट किया जाना चाहिए। इसके बाद निर्यातक को माल हटाने के लिए उत्पाद शुल्क का भुगतान किए बिना अपने न्यायाधिकार क्षेत्र में उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड से एक प्रमाणीकरण भी प्राप्त करना होता है। सुपरिंटेंडेंट सी-2 को सूचित करता है और इसे विनिर्माता को भेजता है, जो इसके बाद विनिर्मित माल को फॉर्म ए आर ई -3 के अंतर्गत निर्यात वेयरहाउस को भेज सकता है। वेयरहाउस में माल प्राप्त होने पर वेयरहाउस का उत्पाद एवं सीमा शुल्क प्रभारी अधिकारी ए आर ई-3 को प्रतिहस्ताक्षर करेगा और इसकी एक प्रति रेंज अधिकारी को भेजेगा, जिसके पास फैक्टरी हटाने का न्यायाधिकार क्षेत्र होगा। पैकिंग सामग्री भी इसी प्रक्रिया से खरीदी जा सकती है।
आवश्यक होने पर निर्यातक अपने विदेशी ग्राहकों की आवश्यकतानुसार एक या अधिक विनिर्माताओं से माल की पैकिंग, रीपैकिंग, लेबलिंग, रीलेबलिंग कराता है और फिर ए आर ई-1 के अंतर्गत निर्यात के लिए वेयरहाउस से माल हटाता है। निर्यातक को माल प्राप्ति, स्टोरेज और माल भेजने का समुचित रिकार्ड रखना चाहिए, ताकि ए आर ई-3 के अंतर्गत प्राप्त माल का मिलान ए आर ई-1 के अंतर्गत भेजे गए माल से किया जा सके।
निर्यातों के प्रभावी होने और कस्टम्स द्वारा विधिवत एंडोर्स किए हुए ए आर ई-1 की प्राप्ति के बाद, निर्यातक अपने बॉन्ड खाते में क्रेडिट ले सकता है। उसे प्रत्येक महीने में निर्यात किए गए माल की तारीख के साथ ए आर ई-1 की मूल प्रतियां, जो कस्टम्स प्राधिकारियों द्वारा प्रमाणित होनी चाहिए कि माल का निर्यात वास्तव में हुआ है और समाधान विवरण अर्थात ए आर ई-1 की सूची प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
वेयरहाउस के प्रभारी सुपरिंटेंडेंट को ए आर ई-1 की सत्यापित प्रतियों को प्रमाणित करना होता है (निर्यातक को एक से अधिक प्रतियों की जरूरत होती है, क्योंकि एक ए आर ई-1 में ए आर ई-3 की कई वस्तुएं हो सकती हैं) और निर्यातक को देनी होती है, ताकि वह उस फैक्ट्री को दे सके, जिसका माल निर्यात किया जा रहा है और उन फैक्टरियों को भी सेनवैट क्रेडिट जैसे अन्य निर्यात लाभ मिल सकें।
वेयरहाउस वस्तुओं को शुल्क और ब्याज के भुगतान पर वेयरहाउस के प्रभारी अधिकारी की अनुमति से घरेलू खपत के लिए डाइवर्ट किया जा सकता है।
एक्सपोर्ट हाउस के रूप में मान्यता प्रदान करने यानी एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा देने का उद्देश्य देश के निर्यातों को बढ़ाना और निर्यातकों को कुछ विशेषाधिकार प्रदान करते हुए निर्यातों को सुगम बनाना है।
वस्तुओं, सेवाओं और प्रौद्योगिकी के वे सभी निर्यातक अपने-अपने निर्यात निष्पादन के आधार पर एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं, जिनके पास निर्यात-आयात कोड (आईईसी) है। निर्यात निष्पादन की गणना मुक्त विदेशी मुद्रा विनिमय में निर्यात आय के एफओबी मूल्य के आधार पर की जाएगी। डीम्ड निर्यात के लिए, निर्यातों का एफओबी मूल्य सीबीईसी द्वारा अधिसूचित तथा प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 1 अप्रैल को यथा लागू विनिमय दर पर भारतीय रुपए से यूएस डॉलर में परिवर्तित किया जाएगा। यह दर्जा हासिल करने के लिए, तीन में से कम से कम दो वर्षों में निर्यात निष्पादन आवश्यक है। किसी आवेदक को वर्तमान और पिछले दो वित्तीय वर्षों के दौरान उसके निर्यात निष्पादन के आधार पर निम्नलिखित अनुसार यह दर्जा दिया जा सकता हैः
दर्जे की श्रेणी | निर्यात निष्पादन एफओबी (परिवर्तित) मूल्य (मिलियन यूएस डॉलर में) |
---|---|
एक सितारा एक्सपोर्ट हाउस | 3 |
दो सितारा एक्सपोर्ट हाउस | 25 |
तीन सितारा एक्सपोर्ट हाउस | 100 |
चार सितारा एक्सपोर्ट हाउस | 500 |
पांच सितारा एक्सपोर्ट हाउस | 2000 |
एक सितारा एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा प्रदान करने हेतु निर्यात निष्पादन की गणना के लिए आईईसी कोड धारक निर्यातक द्वारा निम्नलिखित श्रेणियों में निर्यात को दुहरा भारांक (डबल वेटेज) दिया जाता हैः
किसी शिपमेंट को उपर्युक्त में से किसी एक श्रेणी में एक बार ही दुहरा भारांक (डबल वेटेज) दिया जा सकता है।
एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा प्राप्त निर्यातक निम्नलिखित अनुसार विशेषाधिकार के लिए पात्र होते हैं
एमईआईएस यानी मर्केंडाइज एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम। इसका उद्देश्य भारत में उत्पादित / विनिर्मित वस्तुओं / उत्पादों के लिए बुनियादी ढांचागत अक्षमताओं और निर्यात लागत को कम करना है। विशेष रूप से उन वस्तुओं की निर्यात लागत, जिनका निर्यात अधिक होता है और जिनमें रोजगार की संभावनाएं अधिक हैं, ताकि निर्यात स्पर्धात्मकता को बढ़ाया जा सके। यह लाभ ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप के जरिए दिया जाता है।
आईटीसी (एचएस) कोड वाली अधिसूचित वस्तुओं / उत्पादों की प्रक्रिया पुस्तिका (हैंडबुक ऑफ प्रोसिजर्स) खंड 1 के परिशिष्ट 3बी में उल्लिखित अनुसार अधिसूचित बाजारों को किया गया निर्यात एईआईएस के अंतर्गत लाभ के लिए पात्र है। परिशिष्ट 3बी [आईटीसी (एचएस कोड वार)] में विभिन्न अधिसूचित उत्पादों पर मिलने वाले रिवार्ड्स की दर भी दी गई है। परिशिष्ट 3बी में उल्लिखित 7900 से अधिक मदें अब एमईआईएस के लिए पात्र हैं।
रिवार्ड की गणना, जब तक कि अन्यथा उल्लेख न किया गया हो, मुक्त विदेशी मुद्रा विनिमय में निर्यातों के एफओबी मूल्य अथवा मुक्त विदेशी मुद्रा विनिमय में शिपिंग बिलों में दिए गए निर्यातों के एफओबी मूल्य, इनमें से जो भी कम हो, के आधार पर की जाती है। परिशिष्ट 3सी में उल्लखित अनुसार, ई-कॉमर्स का इस्तेमाल करते हुए कुरियर अथवा विदेशी पोस्ट ऑफिस के जरिए वस्तुओं के निर्यात का एफओबी मूल्य 25000 रुपए प्रति कंसाइन्मेंट तक है, तो वह भी एमईआईएस के अंतर्गत रिवार्ड्स के लिए अधिकृत है। ई-कॉमर्स का इस्तेमाल करते हुए निर्यात का एफओबी मूल्य 25000 रुपए प्रति कंसाइन्मेंट से अधिक है तो एमईआईएस रिवार्ड केवल 25000 रुपए के एफओबी मूल्य तक ही मिलेगा। ऐसी वस्तुएं नई दिल्ली, मुंबई और चेन्नै में विदेशी पोस्ट ऑफिस के जरिए निर्यात की जा सकती हैं।
बहुत सी निर्यात श्रेणियां / खंड एमईआईएस के अंतर्गत रिवार्ड के लिए पात्र नहीं हैं। इनमें से कुछ वो वस्तुएं हैं जो आईटीसी (एचएस) में निर्यात नीति की अनुसूची-2 में निर्यात के लिए प्रतिबंधित हैं। दूध और दुग्ध उत्पाद, हर प्रकार की चीनी, क्रूड / पेट्रोलियम तेल और क्रूड / प्राइमरी और हर प्रकार के बेस उत्पाद और सभी फॉर्मुलेशनों का निर्यात, मांस और मांस उत्पादों आदि का निर्यात, सेवाओं का निर्यात, हीरे, सोने, चांदी, प्लैटिनम और अन्य कीमती धातुओं का किसी भी रूप में निर्यात, अयस्क और भस्म, अनाज और आईटीसी (एचएस) में निर्यात नीति की अनुसूची-2 में निर्यात के लिए प्रतिबंधित तथा जब तक कि परिशिष्ट 3बी में विशेष रूप से अधिसूचित न हों, एमईआईएस के अंतर्गत रिवार्ड के लिए पात्र नहीं हैं।
ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप के अंतर्गत डेबिट के जरिए भुगतान किया गया अतिरिक्त सीमा शुल्क / उत्पाद शुल्क / सेवा कर राजस्व विभाग के नियमों अथवा अधिसूचनाओं के अनुसार सेनवैट क्रेडिट अथवा ड्यूटी ड्रॉबैक के रूप में समायोजित किया जाएगा। नकद भुगतान किया गया अथवा ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप के अंतर्गत डेबिट किया गया आधारभूत सीमा शुल्क राजस्व विभाग के नियमों अथवा अधिसूचनाओं के अनुसार ड्यूटी ड्रॉबैक के रूप में समायोजित किया जाएगा।
आवेदक के नाम वाले शिपिंग बिल को आवेदक के निर्यात निष्पादन / टर्नओवर के रूप में केवल तभी गिनना चाहिए, जब विदेश से निर्यात आय आवेदक के बैंक खाते में आई हो और ई-बीआरसी / एफआईआरसी से इसका प्रमाण मिले। तथापि, एमईआईएस रिवार्ड सहयोगी विनिर्माता (कंपनी/फर्म जिसे विदेशी मुद्रा सीधे विदेश से प्राप्त हुई हो के डिस्क्लेमर के साथ) अथवा कंपनी / फर्म जिसे विदेशी मुद्रा सीधे विदेश से प्राप्त हुई हो, द्वारा क्लेम किया जा सकता है।
निर्यात दायित्व डिफाल्ट होने पर ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप का इस्तेमाल ड्यूटी एक्जंप्शन स्कीम या ईपीसीजी स्कीम के लिए जारी अथॉराइजेशन हेतु सीमा शुल्क के भुगतान के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार का उपयोग उन वस्तुओं के संबंध में किया जा सकेगा, जिनका आयात संबंधित रिवार्ड योजना के अंतर्गत किया जा सकता है। ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप का उपयोग एफटीपी के अंतर्गत कम्पोजिशन फीस, आवेदन फीस, यदि कोई है और निर्यात दायित्व में कम पड़ रहे मूल्य के भुगतान के लिए भी किया जा सकता है।
ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप और एमईआईएस के अंतर्गत देश में ही आयातित / खरीदे गए माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर निःशुल्क ले जाया जा सकता है।
ड्यूटी ड्रॉबैक होती है शुल्क वापसी। दरअसल होता यह है कि किसी भी आयातित माल पर और निर्यात माल के विनिर्माण में इस्तेमाल की गई सेवाओं पर एक शुल्क लगता है। इसी शुल्क की वापसी या इसमें छूट को ड्यूटी ड्रॉबैक के नाम से जाना जाता है। इसका प्रावधान सीमाशुल्क अधिनियम 1962 तथा सीमाशुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सेवाकर ड्रॉबैक नियम, 1995 (ड्रॉबैक नियम, 1995) में किया गया है। शुल्क वापसी की दरें दो तरह की होती हैः (i) सभी उद्योगों की दरें, जिन्हें ऑल इंडस्ट्रीज रेट - एआईआर कहते हैं और (ii) ब्रांड की दरें, जिसे ब्रांड रेट कहा जाता है।
एआईआर को सरकार द्वारा सामान्यतः हर साल शुल्क वापसी अनुसूची के रूप में अधिसूचित किया जाता है। इसका निर्धारण निर्यात उत्पादों की औसत मात्रा और उन पर लगने वाले शुल्कों (उत्पाद और सीमा शुल्क दोनों) तथा इनपुट सेवाओं पर लगने वाले सेवा कर के आधार पर किया जाता है। एआईआर औसत दरें होती हैं, जिनका निर्धारण औसत कर भार, स्वदेशी और आयातित दोनों तरह के उत्पादों की विभिन्न सामग्रियों के खरीद मूल्य, लागू शुल्क दरों, खपत अनुपात और निर्यात उत्पादों के एफओबी मूल्यों के आधार पर किया जाता है। एआईआर निर्यात उत्पाद के एफओबी मूल्य के एक निश्चित प्रतिशत या विशिष्ट दरों के रूप में निर्धारित की जा सकती हैं। शुल्क वापसी की ऊपरी सीमा इसके दुरुपयोग से बचने के लिए निर्धारित की जाती है। ड्रॉबैक नियम, 1995 के नियम 3 के अंतर्गत शुल्क वापसी की अधिकतम राशि निर्यात उत्पाद के बाजार मूल्य की एक तिहाई हो सकती है।
शुल्क वापसी की ब्रांड दर में निर्यातक को निर्यात उत्पाद के वास्तविक कर भार की एक प्रकार से क्षतिपूर्ति कर दी जाती है, जो दस्तावेजों के सत्यापन और उत्पाद के विनिर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की वास्तविक मात्रा के प्रयोग के प्रमाण तथा उसके बाद चुकाए गए शुल्कों पर आधारित होती है। ब्रांड दर ड्रॉबैक नियम, 1995 के नियम 6 और 7 के अंतर्गत निर्धारित की जाती है, जहां निर्यात उत्पाद की शुल्क वापसी के लिए एआईआर नहीं होती या एआईआर उस उत्पाद के विनिर्माण में प्रयुक्त सामग्री पर चुकाए गए शुल्कों के 4/5 से कम होती है।
ब्रांड दर विनिर्माण इकाई के क्षेत्र के केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्तालय द्वारा निर्धारित की जाती है। ब्रांड दर निर्धारण उत्पादों के विनिर्माण में लगी सामग्री के विवरण और उन पर चुकाए गए शुल्कों का विवरण पूर्व निर्धारित समयसीमा में प्रदान कर किया जाता है। शुल्कों की जांच के बाद, उस क्षेत्र के केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्तालय द्वारा आवेदन करने वाले निर्यातक को ब्रांड दर पत्र जारी किया जाता है, जिसमें शिपिंग बिल के एवज में उसे की जाने वाली शुल्क वापसी की राशि सूचित की जाती है। आयुक्तालय द्वारा जारी किए गए ब्रांड दर पत्र की प्रति संबंधित सीमा शुल्क प्राधिकारी को पहुंचाई जाती है, ताकि ब्रांड दर पत्र के अनुसार निर्यातक को शुल्क वापसी की जा सके।
कस्टम्स ईडीआई स्थानों पर शुल्क वापसी के दावों की जांच, मंजूरी और भुगतान ईडीआई सिस्टम की सहायता से की जाती है, जहां से अन्य शर्तें पूरी होने और एयरलाइंस / शिपिंग लाइंस द्वारा ईजीएम सही फाइल किए जाने के बाद शुल्क वापसी की देय राशि निर्यातक के बैंक खाते में सीधे प्रेषित कर दी जाती है।एआईआर अथवा ब्रांड दर निर्यात के समय शिपिंग बिल तथा शिपिंग बिल / निर्यात बिल के निर्धारित प्रारूप में आवश्यक जानकारी प्रदान कर क्लेम की जा सकती है। यदि इलेक्ट्रॉनिक शिपिंग बिल है तो इसे ही शुल्क वापसी के लिए क्लेम मान लिया जाता है। यदि मैनुअल है तो शिपिंग बिल की तीसरी प्रति को शुल्क वापसी के लिए क्लेम माना जाता है। क्लेम ड्रॉबैक नियम 1995 में निर्धारित दस्तावेजों के साथ दिए जाने पर ही पूरा होता है।
एआईआर अथवा ब्रांड दर निर्यात के समय शिपिंग बिल तथा शिपिंग बिल / निर्यात बिल के निर्धारित प्रारूप में आवश्यक जानकारी प्रदान कर क्लेम की जा सकती है। यदि इलेक्ट्रॉनिक शिपिंग बिल है तो इसे ही शुल्क वापसी के लिए क्लेम मान लिया जाता है। यदि मैनुअल है तो शिपिंग बिल की तीसरी प्रति को शुल्क वापसी के लिए क्लेम माना जाता है। क्लेम ड्रॉबैक नियम 1995 में निर्धारित दस्तावेजों के साथ दिए जाने पर ही पूरा होता है।
हालांकि निर्यात आय का पूर्व प्रत्यावर्तन शुल्क वापसी (ड्यूटी ड्रॉबैक) पूर्वापेक्षा नहीं है, तथापि कानूनी प्रावधानों के अनुसार यदि बिक्री लाभ आरबीआई द्वारा निर्धारित समयसीमा के भीतर प्राप्त नहीं हुआ है तो शुल्क वापसी ड्रॉबैक नियम 1995 में निर्दिष्ट अनुसार की जाएगी।
एडवांस अथॉराइजेशन स्कीम यानी अग्रिम प्राधिकार योजना। इसके जरिए निर्यात योग्य उत्पादों को तैयार करने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का ड्यूटी फ्री आयात किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, इस योजना के अंतर्गत विनिर्माण प्रक्रिया में लगने वाले ईंधन, तेल और उत्प्रेरकों का भी ड्यूटी फ्री आयात संभव है। निर्यात उत्पाद के साथ निर्यात की जाने वाली अनिवार्य सामग्री का भी इस योजना के अंतर्गत शुल्क रहित आयात किया जा सकता है। कुछ उत्पादों को छोड़कर इस योजना के अंतर्गत न्यूनतम वेल्यू एडिशन 15% है।
विनिर्माताओं और सहायक विनिर्माताओं से जुड़े व्यापारी निर्यातकों को अग्रिम प्राधिकार (एडवांस अथॉराइजेशन) प्रदान किया जा सकता है। डीम्ड एक्सपोर्ट से जुड़े मुख्य कॉन्ट्रैक्टर और सब-कॉन्ट्रैक्टरों को भी अग्रिम प्राधिकार मिल सकता है।
वस्तुगत निर्यातों या डीम्ड एक्सपोर्ट के लिए अग्रिम प्राधिकार विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा जारी किए जाते हैं। ये डीजीएफटी द्वारा अधिसूचित स्टैंडर्ड इनपुट आउटपुट नॉर्म्स (एसआईओन) के रूप में जारी किए जाते हैं। जहां डीजीएफटी द्वारा किसी वस्तु के लिए एसआईओन को अधिसूचित नहीं किया गया है या अधिसूचित किया गया है, लेकिन निर्यातक अलग इनपुट चाहता है या इनपुट की अलग मात्रा चाहता है तो वह अपनी स्वयं की घोषणा और विनिर्माण प्रक्रिया आदि की आवश्यक जानकारी प्रदान कर प्राधिकार के लिए आवेदन कर सकता है, ताकि डीजीएफटी की नॉर्म्स समिति इस संबंध में मानदंड बना सके।
कस्टम्स को निर्यात दायित्व पूरा करने की वचनबद्धता संबंधी बॉन्ड प्रस्तुत करने के एवज में ड्यूटी फ्री आयात की अनुमति है। कुछ निर्यातकों के मामलों में बॉन्ड के साथ गारंटी का होना भी जरूरी है। निर्यात दायित्व पूरा करने के लिए सामान्य समयावधि 18 महीने है, जिसे निर्धारित कंपोजिशन फीस के भुगतान पर बढ़ाकर 30 माह तक किया जा सकता है।
ड्यूटी फ्री सामग्री का उपयोग प्राधिकृत प्रयोक्ता द्वारा ही किया जा सकता है। अर्थात ड्यूटी फ्री सामग्री प्राधिकार में विनिर्माता अथवा सहयोगी विनिर्माता की फैक्ट्री में ही इस्तेमाल होनी चाहिए। उस सामग्री को बेचा या किसी और को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है, यहां तक कि निर्यात दायित्व पूरा करने के बाद भी नहीं। तथापि, ड्यूटी फ्री सामग्री से तैयार उत्पादों को निर्यात दायित्व पूरा करने के बाद घरेलू बाजारों में बेचा जा सकता है। अग्रिम प्राधिकार धारक को ड्यूटी फ्री आयातित सामग्री का अलग से हिसाब रखना चाहिए और निर्यात उत्पाद के विनिर्माण में इस सामग्री के समुचित उपयोग तथा खपत का विवरण प्रस्तुत करना चाहिए।
एक निर्यातक अग्रिम प्राधिकार के लिए आवेदन करने के बाद अपना निर्यात दायित्व पूरा करना शुरू कर सकता है और कुछ ऐसी चुनिंदा वस्तुओं को छोड़कर, जिन पर पूर्व-आयात की शर्त लागू है, अपनी ड्यूटी फ्री सामग्री का आयात बाद में कर सकता है। ऐसे में निर्यातक को आयात के समय कस्टम्स को कोई बॉन्ड प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं होगी।
अग्रिम प्राधिकार धारक यदि सामग्री आयात करने के बजाय इसे अपने घरेलू विनिर्माता से खरीदता है तो वह प्रत्यक्ष आयात संबंधी अपने प्राधिकार को रद्द करा एडवांस रिलीज ऑर्डर (एआरओ) अथवा रद्दीकरण पत्र (आईएल) प्राप्त कर सकता है अथवा स्थानीय आपूर्तिकर्ता के पक्ष में बैक-टू-बैक साख पत्र (एलसी) प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार के एआरओ अथवा आईएल के एवज में की गई आपूर्ति को डीम्ड एक्सपोर्ट माना जाएगा।
निर्यात दायित्व पूरा करने के लिए किया गया निर्यात डीईईसी शिपिंग बिलों के अंतर्गत किया जाना चाहिए। निर्यात दायित्व पूरा किए जाने के बाद निर्यातक को इसके प्रमाण के रूप में शिपिंग बिलों की ईपी कॉपी (यदि डीम्ड एक्सपोर्ट है तो इनवॉइस) और ई-बीआरसी निर्यात के प्रमाण के रूप में प्राधिकार जारीकर्ता प्राधिकारियों और कस्टम्स के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी तथा निर्यात दायित्व डिस्चार्ज प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा।
डीएफआईए यानी ड्यूटी फ्री इंपोर्ट अथॉराइजेशन स्कीम। यह शुल्क मुक्त आयात प्राधिकार पत्र होता है। यह अग्रिम प्राधिकार (एडवांस अथॉराइजेशन) स्कीम की तरह ही है। यानी इसके जरिए भी आप निर्यात किए जाने वाले उत्पाद बनाने के लिए उसकी सामग्री का ड्यूटी फ्री आयात कर सकते हैं। इसके अंतर्गत भी उत्पादन में लगने वाले ईंधन, तेल और उत्प्रेरकों का ड्यूटी फ्री आयात किया जा सकता है।
फिर यह अग्रिम प्राधिकार (एडवांस अथॉराइजेशन) से अलग कैसे हुई? तो दोनों में बस इतना ही अंतर है कि एक निर्यात से पहले काम में आती है तो दूसरी निर्यात के बाद। डीएफआईए निर्यात के बाद वाली योजना है। हालांकि यदि आप इस योजना का लाभ उठाना चाहते हैं तो आपको इसके लिए आवेदन निर्यात से पहले ही करना होगा। यह आवेदन विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) में करना होगा। आवेदन करते समय आपको एक फाइल नंबर मिलेगा। निर्यात या डीम्ड एक्सपोर्ट करते समय निर्यातक को शिपिंग बिल / निर्यात बिल / एआरई-1/एआरई-3, एक्साइज इनवॉयस जैसे अपने निर्यात दस्तावेजों पर यह फाइल नंबर लिखना होता है। जिस माल के निर्यात दस्तावेज लगाए हैं, उन सभी की आपूर्ति डीएफआईए के लिए आवेदन करने के 12 महीने के भीतर हो जानी चाहिए। इसके बाद, निर्यातक कॉपी के साथ शिपमेंट का विवरण या शिपिंग बिल / इनवॉयस (यदि डीम्ड एक्सपोर्ट है) और निर्यातक को निर्यात संबंधी सभी दस्तावेजों के साथ ई-बीआरसी को डीजीएफटी में प्रस्तुत करना होता है। वहां सम्यक जांच के बाद संबंधित कार्यालय निर्यात किए जाने वाले उत्पाद के लिए लागू मानक निविष्टि उत्पादन मानदंड (स्टैंडर्ड इनपुट आउटपुट नॉर्म्स - सिओन) के अनुसार, डीएफआईए के अंतर्गत ड्यूटी फ्री सामग्री के आयात की अनुमति प्रदान करेगा।
प्रत्येक एसआईओएन और प्रत्येक बंदरगाह के लिए अलग डीएफआईए जारी किया जाएगा। प्रक्रिया पुस्तिका (हैंडबुक ऑफ प्रोसीजर्स) के पैराग्राफ 4.37 में उल्लिखित अनुसार, डीएफआईए के अंतर्गत एकल बंदरगाह से निर्यात किया जाएगा। डीएफआईए स्कीम केवल उन्हीं उत्पादों के लिए उपलब्ध होगी, जो डीजीएफटी द्वारा एसआईओएन में अधिसूचित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, ऐसे निर्यात उत्पादों के लिए डीएफआईए जारी नहीं किया जाएगा, जिनके लिए एसआईएओएन में किसी भी सामग्री के लिए ‘एक्चुअल यूजर’ कंडीशन उल्लिखित है। डीएफआईए के मामले में न्यूनतम वेल्यू एडीशन 20% है, जबकि एडवांस अथॉराइजेशन के अंतर्गत अधिकांश उत्पादों के लिए न्यूनतम वेल्यू एडीशन 15% है।
ऐसे उत्पाद जिनके लिए अलॉय स्टील, स्टेनलैस स्टील, तांबे का (कॉपर) अलॉय, सिंथेटिक रबर, बैरिंग, द्रावक (सॉल्वेंट), इत्र / सुगंधित तेल / सुगंधित रसायन, फैब्रिक, मार्बल, कीटनाशी, सीसा (लैड) इनगट, जस्ता (जिंक) इनगट, इपॉक्सी रेसिन आदि जैसी 22 संवेदनशील सामग्रियों की जरूरत होती है, उनके लिए निर्यातक को तकनीकी गुणों और आकार आदि संबंधी घोषणा शिपिंग बिल में करनी होती है। डीएफआईए जारी करते समय क्षेत्रीय प्राधिकारी द्वारा प्राधिकार पत्र में सामग्री के संबंध में इन तकनीकी गुणों और आकार आदि का उल्लेख किया जाएगा।
डीएफआईए वास्तविक उपयोक्ता शर्त के अधीन नहीं है। यह किसी भी पार्टी को हस्तांतरित किया जा सकता है और जिसे हस्तांतरित किया गया है, वह इसे किसी अन्य पार्टी को हस्तांतरित कर सकता है या आयातित माल पर मूल सीमा शुल्क (कस्टम्स ड्यूटी) से छूट का क्लेम करने के लिए खुद इस्तेमाल कर सकता है।
डीएफआईए के अंतर्गत मंजूरी प्राप्त आयातित माल को केवल मूल सीमा शुल्क से छूट मिलती है, जबकि एडवांस अथॉराइजेशन के अंतर्गत मंजूरी प्राप्त आयातित माल के लिए कस्टम्स टैरिफ एक्ट, 1975 की धारा 3(1) और 3(5) के अंतर्गत अतिरिक्त सीमा शुल्क, एंटी-डंपिंग, सेफागार्ड ड्यूटी, सब्सिडी रोधी प्रतिकारी शुल्क (एंटी-सब्सिडी काउंटरवेलिंग ड्यूटी), शैक्षणिक सेस आदि से भी छूट मिलती है। जब डीएफआईए के अंतर्गत एडवांस रिलीज़ ऑर्डर के जरिए घरेलू सामग्री खरीदी जाती है, तब टर्मिनल एक्साइज ड्यूटी का रिफंड उपलब्ध नहीं होगा।
ट्रिपल ए यानी एनुअल एडवांस अथॉराइजेशन स्कीम। इसका सीधा मतलब होता है- वार्षिक अग्रिम प्राधिकार पत्र योजना। निर्यातकों को यह प्राधिकार पत्र देने का मकसद है कि वे थोक में निर्यात किए जाने वाले अपने सामान के निर्माण के लिए जरूरी सामग्री का आसानी से आयात कर सकें और उस सामग्री की खरीद की लागत कुछ कम हो सके। कुछ बातों को छोड़कर मोटे तौर पर यह अग्रिम प्राधिकार (एडवांस अथॉराइजेशन) जैसा ही होता है।
अग्रिम प्राधिकार के विपरीत, यह केवल मानक निविष्टि उत्पादन मानदंड (स्टैंडर्ड इनपुट-आउटपुट नॉर्म्स - सिओन) में अधिसूचित वस्तुओं के लिए ही जारी किया जा सकता है। यह सिओन में भी परिशिष्ट 4-जे में उल्लिखित वस्तुओं के लिए जारी नहीं किया जाता।
यह प्राधिकार केवल उन्हीं निर्यातकों को दिया जाता है, जो पिछले दो वित्तीय वर्षों से लगातार निर्यात कर रहे हों। इस प्राधिकार के अंतर्गत आयात पात्रता का मूल्य (सी आई एफ), गत वित्तीय वर्ष में निर्यात के मूल्य और / अथवा डीम्ड एक्सपोर्ट के मूल्य (एफ ओ बी या एफ ओ आर) के 300% तक अथवा 1 करोड़ रुपए, जो भी ज्यादा हो, तक होगा। पात्र प्राधिकार सीमा के अंतर्गत, एक लाइसेंसिंग वर्ष में निर्यातक एक या अधिक प्राधिकारों के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि एक ही उत्पाद समूह के लिए एक बंदरगाह पर पांच से अधिक प्राधिकार पत्र जारी नहीं किए जा सकते हैं। प्राधिकारों के मूल्य में एक बार बढ़ोत्तरी / कटौती उपलब्ध होगी। एक ही लाइसेंसिंग वर्ष में जारी एक या एकाधिक प्राधिकारों के एवज में यदि निर्यातक द्वारा अपना निर्यात दायित्व पूरा कर लिया जाता है तो उस लाइसेंसिंग वर्ष के लिए निर्यातक का प्राधिकार पूर्ण किए गए निर्यात दायित्व की राशि के बराबर फिर से रिवाइव हो जाएगा।
इस प्राधिकार की अनूठी विशेषता यह है कि चूंकि आयात की जाने वाली वस्तुओं की कोई मात्रा निर्धारित नहीं है इसलिए प्राधिकार धारक को अपनी समग्र पात्रता में शुल्क छूट वाली सामग्री का उपयोग करते हुए निर्यात उत्पाद समूह के अंतर्गत आने वाले किसी भी उत्पाद का निर्यात करने की सुविधा मिल जाती है।
इस प्राधिकार के एवज में आयात माल (कन्साइनमेंट) की मंजूरी के समय निर्यातक को अपने माल के तकनीकी पहुलओं, गुणवत्ता और आकार आदि का उल्लेख करना आवश्यक है, जो प्रविष्टि पत्र या इनवॉयस में शामिल किया जाएगा और जिसे निम्नलिखित सामग्री के संबंध में सीमा शुल्क प्राधिकारी द्वारा सत्यापित किया जाएगाः “स्टेनलैस स्टील सहित अलॉय स्टील, तांबे का (कॉपर) अलॉय, सिंथेटिक रबर, बैरिंग, द्रावक (सॉल्वेंट), इत्र / सुगंधित तेल / सुगंधित रसायन, संबंधित फैब्रिक और मार्बल।”
प्राधिकार के प्रमुख नुकसान:
सुरक्षा शुल्क, उत्पादों को एक से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए विशिष्ट सुरक्षा शुल्क और डंपिंग रोधी शुल्क से निम्नलिखित आयातित सामग्री के संबंध में छूट नहीं मिलेगीः-
निर्यात दायित्व प्राधिकार में उल्लिखित उत्पादों और ऐसे उत्पाद जिनके लिए केंद्रीय उत्पाद शुल्क नियम, 2002 के नियम 18 अथवा नियम 19 के उप नियम (2) के अंतर्गत सुविधा न ली गई हो, का भारत में विनिर्मित उत्पादों का निर्यात कर पूरा किया जाना जरूरी है।
ईपीसीजी यानी निर्यात संवर्धन पूंजीगत वस्तु योजना। इससे तात्पर्य है- निर्यात बढ़ाने के उद्देश्य से मशीनरी आयात की योजना। इस योजना के अंतर्गत निर्यातक निर्यात योग्य उत्पाद तैयार करने के लिए उत्पादनपूर्व, उत्पादन में और उत्पादन के बाद लगने वाली जरूरी मशीनरी तथा उसके पुर्जों का आयात शून्य शुल्क पर कर सकते हैं। इसकी एक ही शर्त है कि ईपीसीजी योजना के अंतर्गत आयात की गई मशीनरी पर बचाए गए शुल्क 6 गुना राशि के समतुल्य का निर्यात ईपीसीजी प्राधिकार जारी होने के 6 साल के अंदर पूरा कर लिया जाए। इस अवधि को 2 साल तक और बढ़ाया जा सकता है। निर्दिष्ट हरित प्रौद्योगिकी (ग्रीन टेक्नोलॉजी) वाले उत्पादों के निर्यात और देश के पूर्वोत्तर राज्यों तथा जम्मू-कश्मीर में स्थित इकाइयों से निर्यात के लिए निर्यात दायित्व में और छूट दी जाती है। ऐसी स्थिति में निर्यात दायित्व का कम से कम 50% पहले चार साल में पूरा कर लिया जाना चाहिए।
ईपीसीजी प्राधिकार ऐसे निर्यातकों को जारी किए जाते हैं जो खुद विनिर्माण करते हों। या ऐसे व्यापारियों को जारी किए जाते हैं जो विनिर्माताओं, सेवा प्रदाताओं और एक समान (कॉमन) सेवा प्रदाता को सहयोग देते हों। प्राधिकार में निर्यात उत्पाद / सेवा और निर्यात दायित्व का उल्लेख होता है।
विनिर्माताओं / व्यापारियों, सेवा निर्यातकों के मामले में निर्यात दायित्व, इस योजना के अंतर्गत आयातित मशीनरी का इस्तेमाल करते हुए तैयार किए गए उत्पादों या सेवाओं के निर्यात के जरिए ही पूरा किया जाना जरूरी है। निर्यात दायित्व का अर्थ ऐसे निर्यात से है, जो उन्हीं उत्पादों और उसी तरह के उत्पादों के लिए गत तीन लाइसेंसिंग वर्षों में हासिल किए गए निर्यात के औसत स्तर से अधिक होता है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में निर्यात के औसत स्तर को बनाए रखना जरूरी नहीं है।
ईपीसीजी प्राधिकार धारक को मशीनरी का आयात शुरू करने से पहले सीमा शुल्क विभाग में 100% बैंक गारंटी के साथ एक बॉन्ड भरना जरूरी होता है। हालांकि सीमा शुल्क विभाग के परिपत्र संख्या 58/2004-सीमा शुल्क दिनांकित 21-10-2004 में विनिर्दिष्ट अनुसार कुछ श्रेणियों में निर्यातकों को बैंक गारंटी देने से छूट मिलती है। सामान्यतया, मशीनरी का आयात इन शर्तों के अधीन होता है कि इसे निर्यात दायित्व पूरा होने तक न तो हस्तांतरित किया जा सकता है और न ही बेचा जा सकता है।
मशीनरी के लिए इंस्टॉलेशन प्रमाण पत्र अपने क्षेत्राधिकार वाले केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग अथवा स्वतंत्र चार्टर्ड इंजीनियर से प्राप्त कर प्रस्तुत करना आवश्यक है। यदि प्राधिकार में विनिर्माता का विवरण पहले से ही दिया गया है तो मशीनरी को विनिर्माता के परिसर में इंस्टॉल किया जा सकता है।
निर्यात दायित्व भौतिक निर्यात या डीम्ड एक्सपोर्ट के जरिए पूरा किया जा सकता है। ईपीसीजी प्राधिकार धारक द्वारा अपने लदान (शिपिंग) बिल / (डीम्ड एक्सपोर्ट है तो) इनवॉइस में अपनी ईपीसीजी प्राधिकार संख्या और तारीख का उल्लेख किया जाना जरूरी है। निर्दिष्ट निर्यात दायित्व पूरा करने के बाद प्राधिकार जारीकर्ता क्षेत्रीय प्राधिकारी के समक्ष जरूरी दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने अपेक्षित हैं। दस्तावेजों की जांच के बाद उक्त प्राधिकारी द्वारा निर्यात दायित्व निर्वहन प्रमाण पत्र (ईओडीसी) जारी किया जाता है। बॉन्ड / बैंक गारंटी के रिडेम्प्शन (प्रतिदान) के लिए सीमा शुल्क प्राधिकारी द्वारा रजिस्ट्रेशन पोर्ट पर इस प्रमाण पत्र को देखा जाता है, और खुफिया जांच बिंदुओं सहित अन्य निर्धारित जांच बिंदुओं के जरिए भी इसकी पुष्टि की जाती है।
प्रत्यक्ष आयात के लिए ईपीसीजी प्राधिकार अमान्य घोषित किए जा सकते हैं और घरेलू विनिर्माता को अग्रिम निर्मुक्ति आदेश (एडवांस रिलीज़ ऑर्डर) अथवा अमान्यीकरण पत्र जारी किया जा सकता है। अग्रिम निर्मुक्ति आदेशों अथवा अमान्यीकरण पत्रों के एवज में की गई आपूर्ति को डीम्ड एक्सपोर्ट माना जाता है। स्वदेशी पूंजीगत माल के मामले में निर्यात दायित्व घटकर 25% रह जाता है।
निर्यात पश्चात ईपीसीजी ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप योजना के अंतर्गत, ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप शुल्क छूट के रूप में प्रदान किए जाते हैं। यह हस्तांतरणीय होते हैं। इसकी गणना आयातित मशीनरी पर सीमा शुल्क विभाग में अदा किए गए मूल सीमा शुल्क आधार पर की जाती है। इस योजना के अंतर्गत निर्यात दायित्व, लागू निर्यात दायित्व का 85% होता है। इसकी गणना इस रूप में की जाती है, जैसे आयातों पर प्रदत्त शुल्क में छूट का लाभ ले लिया गया हो (अर्थात जैसे- ईपीसीजी शुल्क छूट योजना)। शुल्क में छूट निर्धारित अवधि में निर्यात दायित्व पूरा करने के अनुपात में दी जाती है। पूंजीगत माल के शुल्क प्रदत्त आयात के एवज में एक से अधिक ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप जारी किए जा सकते हैं, जिसकी गणना निर्यात दायित्व पूरा करने की प्रगति पर आधारित होती है। ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप का इस्तेमाल सीमा शुल्क / उत्पाद शुल्क के भुगतान के लिए किया जा सकता है।
निर्यात उन्मुख इकाई (ईओयू) योजना, इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (ईएचटीपी) योजना, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (एसटीपी) योजना अथवा बायो टेक्नोलॉजी पार्क (बीटीपी) योजना के अंतर्गत इकाइयों को उत्पादन के लिए जरूरी सामान अपने घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) या डीटीए में अनुबद्ध गोदामों या भारत में लगने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों से आयात करने या खरीदने की अनुमति है। इनमें पूंजीगत माल, कच्चा माल, पुर्जे, पैकिंग सामग्री, उपभोज्य वस्तुएं, स्पेयर तथा सामग्री संभालने वाले उपकरणों सहित अन्य विनिर्दिष्ट श्रेणियों के उपकरण शामिल हैं, जो निर्यातों के लिए उत्पादन अथवा निर्यात के किसी भी चरण में अपेक्षित हैं। इनमें आयात के लिए प्रतिबंधित वस्तुओं की खरीद की अनुमति नहीं है। यदि निर्यातोन्मुख इकाई कृषि, पशुपालन, पुष्पोत्पादन, बागवानी, मत्स्यपालन, अंगूरों की खेती, पोल्ट्री, रेशम उत्पादन और ग्रेनाइट उत्खनन के क्षेत्र में काम कर रही हैं तो केवल संबंधित अधिसूचना में विनिर्दिष्ट श्रेणियों में ही शुल्क रहित (ड्यूटी-फ्री) आयात की अनुमति है।
सीमा शुल्क में छूट के लिए दिनांक 31-3-2003 की अधिसूचना संख्या 52/2003-सीमाशुल्क (आयातों के लिए) और केंद्रीय उत्पादन शुल्क में छूट के लिए इसी तारीख की अधिसूचना संख्या 22/2003-सीई (घरेलू खरीद के लिए) में इस योजना के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए लाभार्थी इकाइयों के लिए कई शर्तें निर्धारित की गई हैं। इन इकाइयों को ये शर्तें पूरी करनी जरूरी होती हैं, ताकि इनके दुरुपयोग को रोका जा जा सके। सके। ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयों को डीटीए द्वारा की गई आपूर्ति को डीम्ड एक्सपोर्ट के रूप में देखा जाता है।
ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी के रूप में अनुमोदन प्राप्त करने के बाद इकाई को संबंधित क्षेत्राधिकार विकास आयुक्त के समक्ष एक कानूनी करार प्रस्तुत करना होता है। इसके साथ ही संबंधित क्षेत्राधिकार केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क सहायक आयुक्त / उपायुक्त के समक्ष बी-17 बॉन्ड में निर्धारित अनुसार बॉन्ड तथा बॉन्ड राशि के 5% के लिए बैंक गारंटी प्रस्तुत करनी होती है। बॉन्ड, मंजूरी प्राप्त तीन महीने के लिए अपेक्षित पूंजीगत माल और कच्चे माल पर शुल्क में दी गई छूट के 25% समतुल्य राशि का होना चाहिए।
इसके बाद इकाई द्वारा एक बॉन्ड खाता खोला जाना चाहिए और आयात किए जाने वाले या घरेलू स्तर पर खरीदे जाने वाले माल पर देय शुल्क की राशि (पूंजीगत माल पर शुल्क का 25%) जमा की जानी चाहिए। इसके बाद इकाई को अपने लिए किए जाने वाले आयात / खरीद संबंधी विवरण जैसे- वस्तुओं का विवरण, मात्रा, मूल्य, शुल्क की राशि आदि की जानकारी केंद्रीय उत्पाद शुल्क के संबंधित क्षेत्राधिकार अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत करनी चाहिए। यह विवरण आयातों के लिए खरीद प्रमाण पत्र या घरेलू विनिर्माताओं से खरीद के लिए सीटी-3 फॉर्म जारी कराने के लिए प्रस्तुत करना अपेक्षित है। ईओयू द्वारा पूर्व-प्रमाणित सीटी-3 फॉर्म प्राप्त किए जा सकते हैं।
आयातों के लिए ईओयू द्वारा प्रविष्टि पत्र भरा जाना चाहिए और सीमा शुल्क विभाग में खरीद प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर 31.3.2003 की अधिसूचना संख्या 52/2003-सीमा शुल्क के अंतर्गत छूट के लिए दावा किया जाना चाहिए। इस विभाग द्वारा माल को मंजूरी मिलने और फैक्ट्री से पावती मिलने के बाद, प्रविष्टि पत्र को संबंधित क्षेत्राधिकार केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।
घरेलू स्तर पर की गई खरीद के लिए घरेलू विनिर्माता को फॉर्म सीटी-3 भेजना अपेक्षित है, जो ईओयू को सीमा शुल्क के भुगतान के बिना माल को मंजूरी दे सकता है। माल को एआरई-3 कवर के अंतर्गत कवर भेजने संबंधी प्रक्रिया जारी रहेगी है। जैसे ही यह माल ईओयू को प्राप्त होता है, सीमा शुल्क प्राधिकारी को सूचित किया जाना चाहिए, ताकि वे माल की जांच कर एआरई-3 फॉर्म पर री-वेयरहाउसिंग प्रमाण पत्र प्रदान कर सकें, जिसे विनिर्माता को वापस भेजा जा सके। पिछले वित्तीय वर्ष में 15 करोड़ रुपए या इससे अधिक के भौतिक निर्यात टर्नओवर वाली इकाइयां पूर्व-प्रमाणित खरीद प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकती हैं और अपने स्वयं के री-वेयरहाउसिंग प्रमाण पत्र प्रदान कर सकती हैं।
निर्यात उन्मुख इकाइयां अपने तैयार माल (रद्दी माल, स्क्रैप, अपशिष्ट तथा सह उत्पादों सहित) को घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) में बेच तो सकती हैं, लेकिन इसमें कुछ शर्तें हैं। यदि इन इकाइयों की नेट आय विदेशी मुद्रा में है तो ये इकाइयां रियायती शुल्क के भुगतान पर भौतिक निर्यातों के 50% (एफओबी मूल्य) तक का माल डीटीए में बेच सकती हैं। किन्तु, एक से अधिक उत्पादों का निर्माण करने वाली इकाइयां डीटीए के 50% के समग्र अधिकार के अंदर निर्यात के 90% एफओबी मूल्य तक का कोई भी उत्पाद डीटीए में बेच सकती हैं। इससे अधिक के माल की डीटीए में बिक्री, शुल्क भुगतान पर की जा सकती है, बशर्ते कि कंपनी विदेशी मुद्रा आय अर्जक हो। नई इकाई के लिए अग्रिम डीटीए बिक्री पहले वर्ष में निर्यातों के अनुमान के आधार पर की जा सकती है। इस बिक्री की अनुमति अग्रिम डीटीए बिक्री पर किए गए शुल्क के भुगतान और ऐसे माल पर देय शुल्क के अंतर को कवर करने के लिए एक बॉन्ड के एवज में दी जा सकती है।
रत्न एवं आभूषण इकाइयों, फार्मास्युटिकल इकाइयों, कार, शराब, चाय (इंस्टैंट चाय को छोड़कर), टेक्सटाइल्स, पैकेजिंग / लेबलिंग / पृथक्करण / रेफ्रिजरेशन / कॉम्पैक्टिंग / माइक्रोनाइजेशन / पिसाई / रसायन को मोनोहाइड्रेट से एनहाइड्रस बनाना या एनहाइड्रस से मोनोहाइड्रेट में तब्दील करना, काली मिर्च और काली मिर्च के उत्पाद और मार्बल आदि क्षेत्रों में काम करने वाली इकाइयों के लिए व्यवस्था थोड़ी सख्त है। सॉफ्टवेयर इकाइयों, ऑनलाइन डाटा कम्यूनिकेशन सहित डीटीए में किसी भी रूप में बिक्री भी निर्यातों के 50% एफओबी मूल्य तक और / अथवा विदेशी मुद्रा आय के 50% तक अनुमत है, जहां इस प्रकार की सेवाओं के लिए विदेशी मुद्रा में भुगतान लिया गया हो।
निर्यात उन्मुख इकाइयों में तैयार माल को घरेलू क्षेत्र में बेचने के लिए मंजूरी प्राप्त माल का मूल्यांकन, सीमा शुल्क कानून के प्रावधानों के अनुसार किया जाता है। इस प्रकार, जब माल के इनवॉयस मूल्य का आकलन ट्रांजैक्शन मूल्य की प्रकृति का होता है, तब ऐसे इनवॉयस के मूल्य को स्वीकार किया जा सकता है।
डीटीए के लिए मंजूर माल पर देय उत्पाद शुल्क, भारत से बाहर उत्पादित या विनिर्मित माल के भारत में आयात करने की स्थिति में सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 अथवा उस समय लागू किसी भी अन्य कानून के अनुसार उस आयातित माल पर देय कुल सीमा शुल्क के बराबर होता है। डीटीए में मंजूरी प्राप्त किसी भी माल के विनिर्माण के लिए इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की समतुल्य मात्रा पर आयात के समय सामग्री पर लगी एंटी डंपिंग ड्यूटी में दी गई छूट के बराबर की राशि का भुगतान भी किया जाना चाहिए।
किसी ईओयू द्वारा डीटीए में बेचे गए माल पर शुल्क की रियायती दरें दिनांक 31-03-2003 की अधिसूचना संख्या 23/2003-केंद्रीय उत्पाद शुल्क के अंतर्गत निर्धारित की गई हैं। यदि माल वैट या केंद्रीय बिक्री कर के भुगतान पर बेचा गया है तो समतुल्य सीमा शुल्क की गणना करते समय, 4% के विशेष अतिरिक्त शुल्क की छूट दी जाती है। जिन वस्तुओं के विनिर्माण में कोई भी भारतीय सामग्री नहीं लगी होती उनके लिए केवल केंद्रीय उत्पाद शुल्क का भुगतान करके ही डीटीए में मंजूरी ली जा सकती है। दूसरे मामलों में, समतुल्य सीमा शुल्क की गणना करते समय, देय मूल सीमा शुल्क के केवल 50% की ही गणना की जाती है। ऐसा माल जिस पर उत्पाद शुल्क न लगता हो या देय आयात शुल्क शून्य हो, ऐसे माल के विनिर्माण में लगने वाली सामग्री पर किसी भी प्रकार की छूट नहीं मिलती है। यदि किसी माल के विनिर्माण में लगने वाली सामग्री पर कोई शुल्क देय नहीं है, लेकिन ईओयू द्वारा किसी शल्क का भुगतान कर दिया गया है, तो वह शुल्क ईओयू को लौटा दिया जाएगा।
स्क्रैप / अपशिष्ट/ उत्पादन के क्रम में निकलने वाले अपशष्ट को विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा अधिसूचित सिओन के अनुसार, शुल्क छूट योजना के अंतर्गत अथवा विकास आयुक्त या नॉर्म्स कमेटी द्वारा निर्धारित एड-हॉक नॉर्म्स के आधार पर डीटीए में बेचा जा सकता है।
रत्न एवं आभूषण इकाइयों सहित निर्यात उन्मुख इकाइयां (ईओयू), इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (ईएचटीपी) इकाइयां, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (एसटीपी) इकाइयां अथवा बायो टेक्नोलॉजी पार्क (बीटीपी) इकाइयां संबंधित क्षेत्राधिकार सीमा शुल्क / उत्पाद शुल्क प्राधिकारियों से वार्षिक अनुमति के आधार पर अपनी उत्पादन प्रक्रिया को फुटकर काम (जॉब वर्क) के जरिए घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) में इकाइयों को ठेके पर दे सकती हैं। इस फुटकर काम में उत्पादित वस्तुओं के प्रकार में परिवर्तन जैसे काम शामिल हो सकते हैं।
ये इकाइयां फुटकर कार्य के लिए पिछले वर्ष के समग्र उत्पादन मूल्य के 50% तक के मूल्य वाले कार्यों को भी डीटीए को ठेके पर दे सकती हैं। इसके लिए संबंधित क्षेत्राधिकार सीमा शुल्क / उत्पाद शुल्क प्राधिकारियों से मामलेवार आधार पर अनुमति लेनी आवश्यक होती है।
उत्पादन और उत्पादन प्रक्रिया दोनों कार्य ठेके पर दिए जा सकते हैं। ये ठेके इकाई द्वारा रखे जा रहे रिकार्ड के आधार पर बिना किसी सीमा के किसी दूसरी ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी या विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) इकाई के जरिए किए जा सकते हैं।
ईओयू / ईएचटीपी / एसटीपी / बीटीपी इकाइयां विदेश में आंशिक उत्पादन के लिए भी सब-कॉन्ट्रैक्ट कर सकती हैं और अनुमति पत्र में उल्लिखित अनुसार, उत्पादन में लगने वाले माल को विदेश भेज सकती हैं। यदि माल विदेश स्थित किसी सब-कॉन्ट्रैक्टर के परिसर से लिया जा रहा है तो अनुमति की जरूरत भी नहीं होती। माल को वापस मंगाने से पहले संबंधित विकास आयुक्त और क्षेत्राधिकार सीमा शुल्क / उत्पाद शुल्क प्राधिकारियों को सूचित किया जाना जरूरी है। इस प्रकार, विदेश स्थित सब-कॉन्ट्रैक्टर को उत्पादन के लिए पहुंचाए गए माल को निर्यात दस्तावेजों के अंतर्गत मंजूरी दी जानी चाहिए। ऐसे माल के मूल्य का निर्धारण सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 14 के अंतर्गत किया जाता है और इस मूल्य की स्वीकृति विदेश में किए गए फुटकर कार्यों पर लगने वाले चार्ज की घोषणा, इनवॉयस और विदेशी मुद्रा के पूर्ण परिवर्तन के आधार पर की जाएगी।
ईओयू निर्यात के लिए अपनी आवश्यकतानुसार डीटीए निर्यातक की ओर से फुटकर काम करा सकती हैं । बशर्ते कि माल का निर्यात सीधे ईओयू परिसर से हो रहा हो और निर्यात दस्तावेज संयुक्त रूप से डीटीए तथा ईओयू के नाम पर तैयार किए गए हों। ऐसे निर्यातों के लिए, सामग्री पर दिया गया शुल्क, डीटीए इकाई को ड्यूटी ड्रॉबैक के ब्रैंड रेट के जरिए रिफंड कर दिया जाता है।
फुटकर कार्यों के दौरान बनने वाले स्क्रैप / अपशिष्ट / अवशेषों को लागू शुल्क का भुगतान करने पर फुटकर कार्य करने वाले के परिसर से मंजूरी दी जा सकती है। अथवा इन्हें सीमा शुल्क / उत्पाद शुल्क प्राधिकारियों की उपस्थिति में नष्ट किया जा सकता है या इकाई को लौटाया जा सकता है।
रत्न एवं आभूषण संबंधी ईओयू द्वारा अन्य ईओयू, या एसईजेड या डीटीए में इकाई के जरिए सब-कॉन्ट्रैक्ट निम्नलिखित शर्तों के अधीन होता हैः-
सेज यानी एसईजेड। इसकी विशेषताएं और लाभ जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि सेज होता क्या है। सेज मतलब विशेष आर्थिक क्षेत्र। इसके नाम में ही इसकी विशेषता छिपी है। इस क्षेत्र में कुछ परिचालन प्राधिकृत कर दिए जाते हैं और फिर उन परिचालनों के लिए इस क्षेत्र को भारतीय सीमा शुल्क क्षेत्र से बाहर माना जाता है। डीटीए से एसईजेड में आने वाले सामान को निर्यात माना जाता है और एसईजेड से डीटीए जाने वाले सामान को आयात माना जाता है।
इस योजना का उद्देश्य कर और शुल्क मुक्त माल और सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ निर्यात योग्य उत्पादन के लिए एकीकृत बुनियादी ढांचा, त्वरित मंजूरी, सिंगल विंडो सिस्टम और निर्यातों को बढ़ाते हुए वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए विदेशी तथा घरेलू निवेशकों को आकर्षित करने वाले प्रोत्साहन पैकेज मुहैया कराना है।
इसके कार्यों और इकाइयों का नियमन एसईजेड अधिनियम, 2005 और एसईजेड नियम, 2006 के प्रावधानों के अंतर्गत किया जाता है। केंद्र सरकार, किसी क्षेत्र को एसईजेड के रूप में अधिसूचित करते समय उस क्षेत्र को निम्नलिखित मानदंडों पर परखती हैः
इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना केंद्र सरकार, राज्य सरकार अथवा किसी व्यक्ति द्वारा संयुक्त रूप से या अलग-अलग की जा सकती है। ऐसे व्यक्ति या निकाय अथवा प्राधिकारी को एसईजेड विकासक (डवलपर) कहा जाता है। सह विकासक (को-डवलपर) वह व्यक्ति होता है, जिसे विकासक के साथ अनुबंध के अनुसार इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति होती है। इन क्षेत्रों की स्थापना वस्तुओं के विनिर्माण अथवा सेवाएं प्रदान करने या व्यापार के लिए की जा सकती है और इनमें एक से अधिक उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है या ये विशिष्ट क्षेत्र वाले हो भी सकते हैं।
इस क्षेत्र में ईकाई स्थापित करनी की एक निश्चित प्रक्रिया है। इस क्षेत्र में वस्तुओं के उत्पादन या सेवाएं देने के लिए अपनी ईकाई लगाने के इच्छुक व्यक्ति को सबसे पहले संबंधित विकास आयुक्त को इस संबंध में एक प्रस्ताव प्रस्तुत करना होगा। फिर वह विकास आयुक्त उस प्रस्ताव को अनुमोदन समिति के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। यह अनुमोदन समिति उस प्रस्ताव को उसी रूप में या किसी संशोधन के साथ स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। इस क्षेत्र में स्थापित ईकाई की निवल आय विदेशी मुद्रा में होनी चाहिए। ऐसी ईकाई की विदेशी मुद्रा आय की गणना इसकी स्थापना के शुरुआती पांच वर्षों में होने वाली आय पर की जाएगी। हालांकि यह निर्धारित शर्तों के अधीन है।
एसईजेड इकाई या विकासक / सह-विकासक किसी शुल्क या कर या सेस का भुगतान किए बिना ही डीटीए से माल का आयात या खरीद कर सकते हैं। ऐसे माल में प्राधिकृत परिचालनों में काम आने वाले पूंजीगत माल (नया या सेकेंड हैंड), कच्चा माल, अर्ध तैयार माल (सेमी-फिनिश्ड आभूषणों सहित), पुर्जे, उपभोज्य वस्तुएं, स्पेयर आदि शामिल हैं। बस शर्त यह है कि आयात किया जाने वाला या खरीदा जाने वाला माल निर्यात-आयात वस्तुओं के इंपोर्ट ट्रेड कंट्रोल (हार्मोनाइज्ड सिस्टम) [आईटीसी (एचएस)] वर्गीकरण में प्रतिबंधित न हो। इस पर भी निर्धारित शर्तें लागू होती हैं।
एसईजेड ईकाई माल या सेवा को अनुमोदन पत्र में निर्धारित नियम और शर्तों के अनुसार निर्यात कर सकती है। निर्यात किए जा सकने वाले ऐसे माल में कृषि उत्पाद, आंशिक प्रसंस्कृत माल, सब-असेंबली और पुर्जे शामिल हैं। इसमें भी आईटीसी (एचएस) में प्रतिबंधित उत्पादों का निर्यात नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, ईकाई द्वारा विनिर्माण प्रक्रिया में बनने वाले सह-उत्पादों, अपशिष्टों और स्क्रैप का निर्यात भी किया जा सकता है।
कोई ईकाई अपने निर्माण के एक हिस्से या किसी निर्माण प्रक्रिया को डीटीए ईकाई को ठेके पर दे सकती है। हालांकि इसके लिए विनिर्दिष्ट अधिकारी से वार्षिक आधार पर पूर्व सहमति लेनी जरूरी है। कोई ईकाई विनिर्माण प्रक्रिया में बनने वाले या डीटीए से संबंधित अपशिष्ट, व्यर्थ, स्क्रैप, टूटे हुए हीरों और सह-उत्पादों की बिक्री भी कर सकती है। हालांकि इस बिक्री पर ईकाई को सीमा शुल्क का भुगतान करना पड़ता है, जो निर्धारित शर्तों को पूरा करने के अधीन है।
ऐसे क्षेत्रों में स्थापित इकाइयां अपने माल को प्रदर्शनी, निर्यात संवर्धन, फुटकर कार्यों की प्रदर्शनी, परीक्षण, मरम्मत, परिष्कार और जांच के लिए अस्थायी रूप से डीटीए में रख सकती हैं। इसके लिए उन्हें किसी प्रकार के शुल्क का भुगतान नहीं करना पड़ता है। हालांकि यह एसईजेड कस्टम्स द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन होता है।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) स्थापित करने वाले और उनकी देखरेख करने वाले ऐसे विकासकों (डेवलपर) और इकाइयों को रिरायत / प्रोत्साहन दिए जाते हैं, जिन्हें उन क्षेत्रों में माल बनाने, सेवाएं प्रदान करने या उन क्षेत्रों में व्यापार करने की मंजूरी प्राप्त होती है। ऐसे प्रमुख प्रोत्साहनों की जानकारी आगे दी गई है।
विशेष आर्थिक क्षेत्र विकसित करने के व्यवसाय से होने वाले लाभ पर विकासक को उसकी सुविधानुसार 15 साल में से किन्हीं भी लगातार 10 वर्षों तक करों में छूट प्रदान की जाती है। हालांकि यह छूट 31 मार्च, 2017 तक अपने परिचालन शुरू कर देने वाले विकासकों को ही मिलती है। इसी तरह, विशेष आर्थिक क्षेत्र इकाइयों को शुरुआती 5 वर्षों तक लाभ पर आयकर से पूरी छूट (100%) मिलती है। यानी शुरुआती 5 साल तक तो लाभ आयकर के दायरे में ही नहीं आता है। उसके अगले 5 वर्षों तक लाभ का 50% और फिर अगले 5 वर्षों तक फिर 50% की छूट मिलती है, हालांकि यह छूट लाभ को संयंत्र और मशीनरी में पुनः निवेश किए जाने पर ही मिलती है। यह नियम 31 मार्च, 2021 तक अपने परिचालन शुरू करने वाली इकाइयों पर लागू रहेगा। ऑफ-शोर बैंकिंग इकाइयों पर शुरुआती पांच साल के लिए कोई आयकर नहीं लगता है। फिर अगले 5 वर्ष तक आयकर में 50% की छूट मिलती है। न्यूनतम वैकल्पिक कर और लाभांश वितरण कर में पहले दी जाने वाली छूट अब बंद कर दी गई है। ज्यादातर एसईजेड परिचालनों के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 और विशेष आर्थिक क्षेत्र नियम, 2006 जैसे विशेष कानून और नियम बनाए गए हैं। एसईजेड विकासक और इकाइयां, अनुमोदन बोर्ड या अनुमोदन समिति द्वारा अनुमोदित प्राधिकृत परिचालनों के लिए माल का आयात या खरीद अनुबद्ध गोदामों या भारत में लगने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों से कर सकती हैं और इस पर उन्हें कोई सीमा शुल्क नहीं देना होता है। आयात प्रक्रिया को काफी हद तक आसान बना दिया गया है। शिपिंग कंपनी आयातित माल को एसईजेड कस्टम्स स्टेशन से संबंधित विशेष आर्थिक क्षेत्र तक पहुंचा सकती है। दूसरा तरीका यह है कि विकासक या इकाइयां एसईजेड कस्टम्स स्टेशन पर प्रविष्टि पत्र (बिल ऑफ एंट्री) प्रस्तुत करें, इसकी जांच कराएं और अपना माल संबंधित विशेष आर्थिक क्षेत्र को भिजवा दें।
घरेलू निर्यात क्षेत्र (डीटीए) से एसईजेड को सामाग्री की आपूर्ति को प्रत्यक्ष निर्यात माना जाता है। इसलिएघरेलू आपूर्तिकर्ता, निर्यात के लिए बनाए जाने वाले उत्पादों की जरूरी सामग्री के शुल्क मुक्त आयात के लिए अग्रिम प्राधिकार (एडवांस अथॉराइजेशन) हासिल कर सकते हैं। आपूर्तिकर्ताओं द्वारा की गई इन आपूर्तियों की गणना, उनके प्राधिकार के एवज में निर्यात दायित्व पूरा करने के रूप में की जा सकती है। वे अपने माल को उत्पाद शुल्क का भुगतान किए बिना या उस माल पर दिए गए शुल्क के रिबेट का दावा कर - सकते हैं। ऐसी आपूर्तियों पर केंद्रीय बिक्री कर और मूल्य वर्धित कर (वैट) नहीं लगता है। इस तरह की आपूर्तियों पर एसईजेड में माल का प्राप्तकर्ता या डीटीए आपूर्तिकर्ता, दोनों में से कोई भी ड्यूटी ड्रॉबैक क्लेम कर सकता है,। हालांकि यह क्लेम निर्धारित शर्तों के अधीन ही किया जा सकता है। डीटीए से एसईजेड को सेवाओं की आपूर्ति के लिए सेवा कर में भी छूट मिलती है।
विकासक और इकाइयों को भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1989 के अंतर्गत छूट मिलती है। वे ऑटोमैटिक अनुमोदन रूट के अंतर्गत 500 मिलियन यूएस डॉलर विदेशी व्यावसायिक ऋण ले सकते हैं। ऑफशोर बैंकिंग इकाइयों को आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) और संविधिक चलनिधि अनुपात (स्टैचुटरी लिक्विडिटी रेशो - एसएलआर) में छूट मिलती है। ये ऑफशोर बैंकिंग इकाइयां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निधियां जुटा सकती हैं और फिर विकासकों एवं इकाइयों को प्रतिस्पर्धी दरों पर ऋण प्रदान कर सकती हैं।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों से होने वाले निर्यात को भारत से वस्तु निर्यात योजना (एमईआईएस) और भारत से सेवा निर्यात योजना (एसईआईएस) के अंतर्गत रिवार्ड मिलते हैं। एसईजेड इकाइयों से निर्यात पर सेस भी नहीं लगते हैं।